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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - -- [१८८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [ नकारादि स्नुहीक्षीरविडङ्गानि घृतं दशममुच्यते ॥ शशिन्यतिविषाव्योपमजमोदा निशाद्वयम् ।। एकैकस्य च कर्षण घृतस्य कुडवं पचेत् । दन्ती च कार्षिक सर्व गोमूत्रस्य पलाष्टकम् । चतुर्गुणेन तोयेन सम्यगेतत्सुखाग्निना ॥ चतुःपलं स्नुहीक्षीरं राजवृक्षफलं तथा ॥ अस्य मात्रां पिबेत्काले पलार्द्धन च सम्मिताम् । एतैश्चतुर्गणे तोये घृतप्रस्थं विपाचयेत् । उष्णोदकश्चानु पिबेद्विरेकार्थ पिबेन्नरः॥ उदरं चामवातश्च प्लीहगुल्मभगन्दरान् । पिबेद् यवागू हविषा पेयां वा क्षीरसाधिताम् । निहन्त्यचिरयोगेन गृध्रसी स्तम्भमूरुजम् । वातगुल्ममुदावते प्लीहाझे बध्नकुण्डलम् ॥ | वृहन्नाराचकन्नाम घृतमेतद्यथामृतम् ॥ ग्रहणीं दीपयेन्मन्दा कुष्ठदोषांश्च नाशयेत् ।। लोध, चीता, चव, बायबिडंग, हर्र, बहेड़ा नाराचकमिदं सर्पिः ख्यातं नाराचसन्निभम् ॥ आमला, निसोत, शङ्खिनी, अतीस, सोंठ, मिर्च, चीता, हर्र, बहेड़ा, आमला, दन्ती, निसोत, | पीपल, अजमोद, हल्दी, दारुहल्दी और दन्तीमूल; कटेली, और बायबिडंग; हरेक वस्तु १।-१। तोला | प्रत्येक १। तोला । तथा सेंड (सेंहुण्ड, थोहर) तथा सेंड (सेहुंड--थोहर) का दूध २॥ तोले लेकर | का दूध ४० तोले और अमलतासका गूदा २० सबको पानीके साथ पीसकर कल्क बनावें । फिर ४० ! तोले लेकर पानीके साथ पीस लें । तत्पश्चात् तोले घीमें यह कल्क और २ सेर पानी मिलाकर २ सेर धीमें ८ सेर पानी, १ सेर गोमूत्र और मन्दाग्नि पर पकार्वे । जब पानी जल जाय तो यह कल्क मिलाकर घृत मात्र शेष रहने तक घी को छान लें। पकावें । पश्चात् छानकर सुरक्षित रक्खें । इसे २॥ तोलेकी मात्रानुसार पीने से विरे- इससे विरेचन होकर उदररोग, आमवात, चन हो जाता है । विरेचन होनेके बाद घृत- | प्लीहा, गुल्म, भगन्दर गृध्रसी और ऊरुस्तम्भादि युक्त यवागु या दूधसे बनी हुई पेया पीनी रोग नष्ट होते हैं । ( मात्रा-१ तोला तक) चाहिये। (३४८४) नारायणघृतम् ___ इसके सेवन से वात, गुल्म, उदावर्त, प्लीहा, अर्श, अन, वातकुण्डलिका, और कुष्ठ नष्ट होता ( मै. र.; यो. र.; वृ. नि. र.; । अम्लपित्त.) तथा ग्रहणी दीप्त होती है । जलैर्दशगुणैः काथ्यं पिप्पलीपलषोडश । ___ अनुपान-उष्ण जल । ( व्यवहारिक मात्रा। पादशेषं हरेत्काथं कायतुल्यं घृतं पचेत् ॥ १ तोला तक) रसप्रस्थं गुड्डूच्याश्च धात्र्याः षष्टिपलं रसम् । द्राक्षाधात्रीपटोलश्च विश्वश्च कटुका वचा ॥ (३४८३) नाराचघृतम् ( वृहद् ) पलप्रमाणं कल्कञ्च दत्त्वा सर्पिः समुद्धरेत् । (भै. र.; र. र. । उदर.) अम्लपित्तं हरं खादेद्दाहच्छर्दिनिवारणम् ॥ लोधचित्रकचव्यानि विडङ्गं त्रिफला त्रिवत् । । असाध्यं साधयेत्सद्यो नाम्ना नारायणं घृतम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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