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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१८६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [नकारादि - सोंठ, निसोत, भरंगी और हिजलके फल । पात्रे लोहमये त्र्यहं रविकरैरालोडयन्पाचयेत् । ११-१। तोला लेकर पानीके साथ पीस लें फिर अनी चानु मृदौसलोहशकलं पादस्थितं तत्पवेत्।। यह कल्क; १ सेर घी और २ सेर पानी एकत्र | पूतस्यांशः क्षीरतोंशस्तयांशोमिला कर पानी जलने तक पकावें। भार्गानिर्यासाद् द्वौ वरायास्त्रयोशाः। ___इसे भोजन पचने पर खिलानेसे बालकोंकी अंशाश्चत्वारश्चेह हैयंगवीनाखांसी, श्वास और अपतन्त्रक रोग नष्ट हो देकीकृत्यै तत्साधयेत्कृष्णलोहैः॥ जाता है। विमलखण्डसितामधुभिः पृथक ( मात्रा-३ से ६ माशे तक ।) युतमयुक्तमिदं यदि वा घृतम् । (३४७९) नागराचं यमकम् । | स्वरुचिभोजनपानविचेष्टितो भवति ना पलशः परिशीलयन् ॥ (वं. से. । उदररोगा.; च. सं. । अ. १८.; वृ. श्रीमान्निधूतपाप्मा वनमहिषषलो वाजिवेगः यो. त. । त. १०५) स्थिरा। नागरं त्रिफला प्रस्थं घृततैलं तथाढकम्। केशैभृकाल्नीलैमधुसुरभिमुखो नैकयोषिभिषेवी।। मस्तुना साधयित्वा तु पिवेत्सर्वोदरापहम् ।। वाङ्मेधाधीसमृद्धःसपटुहुतवहोमासमारोपयोगात् कफमारुतसम्भूते गुल्मे चैव प्रशस्यते । धत्तेऽसौ नारसिंह वपुरनलशिखातप्तचामीकसोंठ और त्रिफलाका समान भाग मिश्रित रामम् ॥ कल्क १ सेर, घी ४ सेर, और तिलका तेल ४ सेर अत्तारं नारसिंहस्य व्याधयो न स्पृशन्त्यपि । तथा मस्तु ( दहीका तोड़ अर्थात् २ गुना पानी चक्रोज्ज्वलभुजं भौता नारसिंहमिवासुराः ।। मिलाकर बनाया हुवा तक) ३२ सेर लेकर सबको । खैरसार, चीता, सीसम, असन, हरे, बायएकत्र मिलाकर पकावें । जब पानी जल जाय तो बिडंग, बहेड़ा, और शुद्ध भिलावा, समान भाग स्नेहको छान लें। मिलाकर १ सेर लें और सबको पीसकर १८ सेर ___ यह यमक कफवातज गुल्म और सर्व प्रकार पानीमें लोह पात्रमें भिगोदें एवं साथ ही उसमें के उदर रोगोंको नष्ट करता है। थोड़ेसे लोहेके टुकड़े भी डाल दें । इसे ३ दिन ( मात्रा--१ से २ तोले तक । ) तक धूप में रक्खा रहने दें और रोज़ २-४ बार (३४८०) नारसिंहघृतम् (१) अच्छी तरह चला दिया करें । तत्पश्चात् उसे (वा. भ. । उ. अ. ३९) लोहेके टुकड़ों समेत मन्दाग्नि पर पकावें । जब ४॥ गायत्रीशिखिशिंशपासनशिवावेल्लाक्षकारुष्करान् सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें । तत्पश्चात् पिष्ट्वाऽष्टादशसंगुणेऽम्भसि धृतान्रखण्डैः सहा- इसमें ४।। सेर दूध, ९ सेर भंगरेका काथ, १३॥ योमयैः ॥ । सेर त्रिफलेका रस और १८ सेर नवनीत (नौनी) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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