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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] सृतीयो भागः। [१८५] यह घी कीटविष, मूलविष, और गरविषादि । यह धृत आमवात ( गठिया) नाशक और हर प्रकारके विषको नष्ट करता है । | अग्निवर्द्धक है । ( मात्रा-१ से २ तोले तक ) (३४७५) नागरघृतम् (१) (३ ४७७) नागरादिघृतम् (वृं. मा. । आमाधिकार) (च. सं. । चि. अ. ८) नागरकाथकल्काभ्यां घृतपस्थं विपाचयेत् । नागरं पिप्पलीमूलं चित्रको हस्तिपिप्पली । चतुर्गुणेन तेनाथ केवलेनोदकेन वा ॥ | श्वदंष्ट्रा पिप्पली धान्यं बिल्वपाठायमानिकाः।। वातश्लेष्मप्रशमनमनिसन्दीपनं परम् । | चाङ्गेरीस्वरसे सर्पिः कल्कैरेतैर्विपाचयेत् । नागरं घृतमित्युक्तं कटग्रामशूलनाशनम् ॥ चतुर्गुणेन दध्ना च तद्धृतं कफवातनुत् ॥ सोंठका कल्क १३ तोले ४ माशे, घी २ सेर, अशीसि ग्रहणीदोपं मूत्रकृच्छू प्रवाहिकाम् । सोंठका काथ या पानी ८ सेर । सबको एकत्र गुदभ्रंशातिमानाहं घृतमेतद् व्यपोहति ॥ मिलाकर पानी जलने तक पकावें । तत्पश्चात् सोंट, पीपलामूल, चीता, गजपीपल, गोखरु, घृतको छानकर रखलें। पीपल, धनिया, बेलगिरी, पाठा और अजवायन । यह धृत वातकफ, फटिशूल और आमशूल सब चीजें समान भाग मिश्रित तथा पानीके साथ नाशक तथा अग्निवर्द्धक है। ( मात्रा १ से २ पिसी हुई २० तोले, घी २ सेर, चारी (चूके) तोले तक) का स्वरस २ सेर, और दही ८ सेर । सबको नोट-काथके लिये-सोंठ ४ सर, पानी ३२ एकत्र मिलाकर जलांश जलने तक पकावें । तत्पसेर, शेष काथ ८ सेर । यदि पानी के श्चात् घृतको छानकर सुरक्षित रक्खें । साथ धृत पाक करना हो तो कल्क २० यह घृत कफ, वायु, अर्श, ग्रहणीदोष, मूत्रतोले डालना चाहिये। कृच्छ, प्रवाहिका (पेचिश), गुदभ्रंश (कांच निकलना) और आनाह को नष्ट करता है। (३४७६) नागरघृतम् (२) (q. मा. । आमा.) ( मात्रा १ से २ तोले तक । ) सपिर्नागरकल्केन सौवीरकचतुर्गुणम् । । (३४७८) नागराचं घृतम् सिद्धममिकरं श्रेष्ठमामवातहरं परम् ॥ (वं. से. । बालरो.) पानीके साथ पिसी हुई सोंठ २० तोले, नागरं सुवहा भाङ्गी नैचुलानि फलानि च । घी २ सेर, सौवीर काञ्जी (जौ से बनी हुई काञ्जी) कल्कैरक्षसमैरेतैः प्रस्थाधै सर्पिषः पचेत् ॥ ८ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर काञ्जी जलने द्विगुणेन जलेनैव जीर्णाहारः पिबेन्नरः । तक पकावें । तत्पश्चात् छानकर रक्खें । घृतमेतन्निहन्त्याशु कासश्वासापतन्त्रकान् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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