SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org त-भैषज्य रत्नाकरः । [ १८४ ] लेकर उसे पत्थर पर पीसकर २ सेर (१६० | तोले ) धीमें मन्दाभि पर भूनें, जब इसका रंग लाल हो जाय तो उसमें १ प्रस्थ सांठका चूर्ण, १६ सेर नायलका पानी; १६ सेर दूध और २ सेर आमलेका रस तथा ०० पल (६ । सेर) खांड मिलाकर पुनः मन्दाग्नि पर प्रकावें । जब गाढ़ा हो जाय तो उसे अग्निसे नीचे उतारकर ठण्डा करके उसमें १-१ पल (५-५ तोळे) सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, इलायची, तेजपात और नागकेसर तथा ३ - ३ कर्ष (३|| तोले) आमला, जीरा, काला जीरा, धनिया, भारत इति नकारादिपाकप्रकरणम् । (३४७३) नवनीतादियोगः ( वृ. नि. र.; वृं. मा. । अर्शो. ) नवनीततिलाभ्यासात्केसरनवनीतशर्कराभ्यासात् दधिसरमथिताभ्यासाद् गुदजाः शाम्यन्ति रक्त वहाः ।। [ नकारादि गठिवन, बंसलोचन और नागरमोथेका अत्यन्त महीन चूर्ण तथा ४ पल (४० तोले) शहद मिलाकर चिकने पात्र में भरकर रक्खें । नवनीत ( नौनीघृत - मक्खन) और तिल; अथवा नागकेसर, नवनीत और खांड को एकत्र मिलाकर या दहीके ऊपरकी मलाई को मथकर सेवन करने से रक्तज अर्श नष्ट होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिदिन शिव, धन्वन्तरि आदिको प्रणाम करके इसमें से १ कर्ष (१| तोला) पाक मूंगके यूषके साथ सेवन करनेसे अम्लपित्त, भयङ्कर शूल, परिणामशूल, अन्नद्रवशूल, भयङ्कर पार्श्वशूल, अग्निमांद्य, मूत्राघात, विशेषतः रक्तपित्त प्रतिश्याय और पीनसादि रोग नष्ट होते हैं । इसके आविष्कारक श्री अश्विनीकुमार हैं । अथ नकारादिघृतप्रकरणम् (३४७४) नागदन्त्याद्यं घृतम् ( वं. से.; धन्व. । विषा. ) नागदन्ती ती नुपयः पलिकैः समैः । गवां मूत्राढके सिद्धं सर्पिः सर्वविषापहम् ॥ सर्पकीटविषार्त्तानां गरार्तानाञ्च शस्यते ॥ नागदन्ती, निसोत और दन्ती ५-५ तोळे तथा सेहुंड ( सेंड - थोहर ) का दूध १० तोले, गोमूत्र ८ सेर और घी २ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर मूत्र जलने तक पकावें । तत्पश्चात् छानकर रक्खें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy