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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१७२] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [ नकारादि (३४३७) निदिग्धिकादियोगः नीमके पत्तोंका चूर्ण शहदमें मिलाकर चाट(ग. नि. । हिक्का.) नेसे शरत्कालीन ज्वर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । निदिग्धिकां चामलकममाणां । ( मात्रा-३ माशेसे आधा तोला तक ) हिवर्धयुक्तां मधुना विमिश्राम् ॥ । (३४४०) निम्बयोगः । लिहेमरावासनिपीडितोऽपि । (बृ. नि. र.; ग. नि.; . मा.; यो. र. । शीतपि.) ___ श्वासं जयत्येष बलात्श्यहेण ॥ निम्बस्य पत्राणि सदा घृतेन धात्रीविमिश्राण्यथवा प्रयुश्यात् । कटेली, और आमला १-१ भाग तथा हींग विस्फोटकोठक्षतशीतपित्तं आधा भाग लेकर चूर्ण बनावें । कण्डस्रपित्तं सकलानि हन्यात् ।। इसे शहदके साथ चाटनेसे ३ दिनमें श्वास घृतके साथ नीमके पत्तोंका या नीमके पत्ते नष्ट हो जाता है। और आमले का समभाग मिश्रित चूर्ण सेवन (३४३८) निम्बपञ्चकचूर्णम् (वृहद्) करने से विस्फोटक, कोठ, क्षत, शीतपित्त, कण्डु (ग. नि. । चूर्णा.) (खुजली ) और रक्तपित्त नष्ट होता है । काले त्वक्छदसारबीजकुसुमेनिम्बस्य तुल्यांशकैः ( मात्रा–३ माशेसे आधे तोले तक) कृत्वा चूर्णमदः कटुपिकनिशाधान्यक्षपध्यायुतैः ।। पञ्चारिष्टमिदं पयोमधुघृतैरुष्णाम्बुना वा पुमान् । (३४४१) निम्बादिचूर्णम् (१) पीत्वा कासगरममेहपिटिकाकुष्ठादिभिर्मच्यते॥ (भा. प्र. । म. ज्वरा.; वै. रह.; वृ. नि. र. । ज्वर.) यथा समय नीमकी छाल, पत्ते, सार, बीज और निम्बपत्रवराव्योषयवानीलवणत्रयम् । फूल १-१ भाग लेकर सुखाकर चूर्ण बनावें, और फिर | क्षारो दिग्वहिरामेषुत्रिनेत्रक्रमशोऽशकान् ॥ उसमें सोंठ, मिर्च, पीपल, हल्दी. आमला. बहेडा सर्वमेकीकृतं चूर्ण प्रत्यूषे भक्षयेभरः। और हर्र में से हर एकका चूर्ण १-१ भाग मिलावें। एकाहिक द्वयाहिकञ्च तथा त्रिदिवसज्वरम् ॥ ___ इसे दूध, शहद, घी या उष्ण जलके साथ | चातुर्थिकं महाघोरं सततं सन्ततं दिवा।। सेवन करनेसे खांसी, विष, प्रमेहपिडिका, और धातुस्थ च त्रिदापात्य ज्वर हान्त न सर्शयः॥ कुष्ठादि रोग नष्ट होते हैं। ___नीमके पत्ते १० भाग, हर्र १ भाग, बहेड़ा ( मात्रा-२ से ३ माशे तक) | १ भाग, आमला १ भाग, सोंठ १ भाग, मिर्च (३४३९) निम्बपल्लवरजः १ भाग, पीपल १ भाग, अजवायन ५ भाग, ( यो. स. । समु. ३) - सश्चल नमक, सैंधव लवण और विडलवण, १-१ शारदं ज्वरमपोहति शीघं भाग और यवक्षार २ भाग लेकर चूर्ण बनावें । निम्बपल्लवरजः समाशिकम् ॥' इसे प्रातःकाल सेवन करनेसे दैनिक, तिजारी, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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