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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम] तृतीयो भागः। [१७३] चौथिया, सन्तत, सतत, धातुगत और सन्निपातज | मासमात्रप्रयोगेण भवेत्काञ्चनसभिभः॥ ज्वर नष्ट होते हैं। वातशोणितमत्युग्रं श्वित्रमौदुम्बरं तथा। ( मात्रा-२-३ माशे । अनुपान-उष्ण जल) | कोठं चर्मदलाख्यश्च सिध्मपामा च विप्लुता ॥ (३४४२) निम्बादिचूर्णम् (२) कण्डूविचर्चिकाकारुदद्रुमण्डलकिटिभम् । (वा. भ. । चि. अ. १९) सर्वाण्येव निहन्त्याशु वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ॥ निम्बं हरिद्रे सुरसं पटोलं आमवातकृतं शोथमुदरं सर्वरूपिणम् । कुष्ठाश्वगन्धे सुरदारु शिग्रुः । प्लीहानं गुल्मरोगश्च पाण्डुरोगं सकामलम् ॥ ससर्षपं तुम्बरु धान्यवन्यं सर्वान्कण्डूव्रणांश्चैव हरते नात्र संशयः। चण्डावचूर्णानि समानि कुर्यात् ।। एतनिम्बादिकं चूर्ण प्राह नागार्जुनो मुनिः ॥ तैस्तक्रपिष्टैः प्रथमं शरीरं नीमको छाल, गिलोय, हर्र, आमला, और तैलाक्तमुद्वर्तयितुं येतत । बाबची १-१ पल (५-५ तोले ), सोंठ, बायतेनास्य कण्डूपिटिकाः सकोठाः बिडंग, पवांड, पीपल, अजवायन, बच, जीरा, कुष्ठानि शोफाश्च शमं व्रजन्ति ।। काली मिर्च, खैरसार, सेंधा नमक, यवक्षार, हल्दी, नीमकी छाल, हल्दी, दारुहल्दी, तुलसी, दारुहल्दी, नागरमोथा, देवदारु और कूठ । हरेक पटोल, कूठ, असगन्ध, देवदारु, सहजनेकी छाल, १-१ कर्ष (११-१। तोला ) लेकर महीन चूर्ण सरसों, तुम्बरु, धनिया, केवटीमोथा, और चोर- करके बारीक कपड़ेसे छानकर रक्खें । पुष्पी। सबका समान भाम चूर्ण लेकर एकत्र मिलावें । इसे नित्य प्रति १ मास तक ४ माशेकी प्रथम शरीर पर तैलकी मालिश करके पश्चात् | मानानमार गिलोय | मात्रानुसार गिलोयके काथके साथ सेवन करनेसे इसे तक्रमें मिलाकर मलनेसे कण्ड, पिडिका, कोठ, भयङ्कर वातरक्त, श्वित्र (सफेद कोढ़), उदुम्बर कुष्ठ, और शोफ नष्ट हो जाता है। कुष्ठ, कोठ, चर्मदल, सिम ( छीप ), पामा, कण्ड (३४४३) निम्बादिचूर्णम् (३) (खुजली ) विचर्चिका, दाद, मण्डल, किटिभ (भै. र.; धन्व. । वातरक्ता.) कुष्ठ, आमवातजनित शोथ, हर प्रकारकी उदर निम्बामृताभयाधात्री प्रत्येक पलोन्मितम् । व्याधि, तिल्ली, गुल्म, पाण्डु, कामला, और व्रणादि सोमराजी पलं शुण्ठी विडोडगजाः कणाः ॥ नष्ट होकर शरीर काश्चनके समान कान्तिमान् हो यमानी चोग्रगन्धा च जीरकं कटुकं तथा। जाता है । खदिरं सैन्धवं क्षारं द्वे हरिद्रे च मुस्तकम् ॥ (३४४४) निर्गुण्ड्याचं वमनम् देवदारु तथा कुष्ठं कर्ष कर्ष प्रदापयेत् । (ग. नि. । ग्रन्थ्या .) सर्व सणितं कृत्वा सूक्ष्मवस्त्रेण छानयेत् ॥ निर्गुण्डीजातीदलदेवदारशाणमात्रन्तु भोक्तव्यं छिमाका पिवेदतु ।। जीमूतक मालिकसैन्धवाट्यम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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