SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कषायप्रकरणम् ] दक्षमूली बरा भद्रा भार्गी चैषां मृतं जलम् । व्यायुतं पीतं वा तेन शाम्यति ॥ दशमूल, हर्डे, बहेड़ा, आमला, कायफल और भरंगी के काथमें त्रिकुटा और हींग मिलाकर पीने से बधिरता जाती रहती है । नोट- त्रिकुटे (सांठ, मिर्च, पीपल ) का चूर्ण १ माशा और हींग १ रत्ती मिलाना चाहिए । (२८२९) दशमूलादिकषायः (२) (वं. से. । वातत्र्या. ) दशमूली लामापकार्थ तैलाज्यमिश्रितम् । सायं वा पिबेनस्यं विश्वाच्यामपबाहुके || दशमूल, खरैटी, और उर्दके काथमें तैल और घी मिलाकर सायंकालके भोजनके बाद नाकसे पीनेसे विश्वाची और अपबाहुक नामक वातज रोग नष्ट होते हैं। (२८३०) दशमूलादिकषाय: ( ३ ) (ग. नि. । विस्फो. ) दिपमूली त्रिफला गुडूची किरातकं धन्वयवासकं च । तं मागधिकाविमिश्रं त्रिदोषविस्फोटहरं प्रदिष्टम् ॥ दशमूल, त्रिफला, गिलोय, चिरायता और धमासा । इनके काथमें पीपलका चूर्ण मिलाकर पिलानेसे त्रिदोषज विस्फोटकका नाश होता है । (२८३१) दशमूलादिकाथ: ( १ ) | ( वृ. नि. र. । सन्नि ; भा. प्र. । ज्व. ) दशमूळमत्स्यशकला चपला त्रिफला महौषधकिरातयुतम् । मुरिचं परिकथितमाशु बलादहन्ति कर्णकरुणः सकलाः ॥ तृतीयो भागः । [५] दशमूल, कुटकी, पीपल, त्रिफला, सेठ, चिरायता और स्याह मिर्चका काथ पीनेसे कर्णक सन्निपात अवश्य शीघ्रही शान्त हो जाता है । (२८३२) दशमूलादिकाथ: ( २ ) ( भा. प्र. म. ख. श्वास; वं. से. यो. र. । हिक्का.) दशमूलस्य वा क्वाथ पौष्करेणावचूर्णितः । श्वासका समशमनः पार्श्वशूलनिवारणः ॥ दशमूल काथमें पोखरमूलका चूर्ण मिलाकर पीने से श्वास, खांसी और पसलीका दर्द नष्ट होता है। (२८३३) दशमूलादिकाथ: ( ३ ) ( वृ. नि. र. । पाण्डु ग. नि.; वृं. मा.; व. से. यो. र. । पाण्डु ) द्विपश्वमूलीकथितं सविश्व कफात्मके पाण्डुगदे पिवेत्तत् । ज्वरेतिसारे श्वयथौ ग्रहण्यां arasvat surgदामयेषु ॥ कफज पाण्डु, ज्वर, अतिसार, शोथ, संग्रहणी, खांसी, अरुचि, कण्ठरोग तथा हृद्रोगमें दशमूलके काथमें सांठका चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८३४) दशमूलादिकाथ: ( ४ ) (वै. म. र. । प. १३) दशमूलानि च नलिनं कुष्ठमुशीरं नतस्पृक्के । एरण्डशिफां च पिबेद् गर्भाशयशोधनाय गो पयसा ।। दशमूल, कमल, कूट, खस, तगर, स्पृक्का ( सेवती ) और अरण्डमूल के काथमें गायका दूध मिलाकर या इनसे गोदुग्ध पकाकर पीने से गर्भाशय शुद्ध होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy