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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [नकारादि .या जायंगी। जायगा। मुख बन्द करके उसपर भी ३-४ कपड़ मिट्टी | तद्भस्मलेपिताः सर्वे धातवस्तु सटङ्कणाः । कर दें । तदनन्तर एक ऐसा गढ़ा खुदवावें कि जो | वह्नितापाद् द्रताः स्युश्च तेऽपि गुल्मादिनाशनाः नीचे से तंग और ऊपरसे चौड़ा हो; इस गढ़े में नीचे एक पात्र रखकर उसके ऊपर हाण्डी रख दें। घृतकुमारी, रसौत, हल्दी, कबीला, खपरिया, हण्डीका गला गढ़ेके किनारे के लगभग बराबर यवक्षार, सज्जीखार, सुहागा, सोरा, फटकी, और मा नाना चाहिये । अब इस हाण्डीके ऊपर १६ पांचों नमक समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और पहर तक अग्नि जलावें तत्पश्चात् हाण्डी के स्वांग उसमें उससे छ गुना मनुष्य, हाथी, घोड़ा, गधा, पीतल होने पर उसके भीतरसे नवसादरकी भस्म ऊंट और सुवरका मूत्र ( हरेकका चूर्णके बराबर तथा गढ़े वाले पात्रसे द्रव को निकालकर सुर अर्थात् सबका मिलाकर चूर्णसे छ: गुना ) तथा क्षित रक्खें। चूर्ण के बराबर गुड़ और काञ्जी मिलाकर मिट्टी के दृढ़ पात्रमें भरकर उसका मुख बन्द करके भूमिमें इस भस्ममें भुना हुवा हीग और साठ, मिर्च दबा दें और एक वर्ष पश्चात् निकालें । इतने तथा पीपल का समान भाग मिश्रित चूर्ण इसके | समय में उपरोक्त समस्त चीजें द्रव हो कर एकबराबर मिलाकर २ माशे की मात्रानुसार सेवन | करनेसे गुल्म और अग्निमांद्य का नाश होता है। (नोट-सैल भी ५ से १० बूंद तक पानी में इस रसमें दिन भर नवसादर को घोटें और | फिर उसे सम्पुट में बन्द करके रात्रिको गजपुट में डालकर पीने से यही लाभ पहुचायेगा)। | फूंक दें। इसी प्रकार ४९ पुट दें और फिर उस (३४१२) नवसारभस्म नवसादर भस्मको पीसकर सुरक्षित रखें । (र. का. धे. । अ. २२) ___यह भस्म हर प्रकारके गुल्म और अन्य कन्यारसाजननिशाकम्पिल्लानि च खर्परी। समस्त उदर रोगोंको नष्ट करती है । मात्रा २ भारअयं सोरका स्फटिका पटुपत्रकम् ॥ रत्ती। पतेभ्यः पटगुण मूत्रमेतेषां च ततः क्षिपेत् । नृगजाश्वखरोष्ट्राणां शूकरस्य पुनस्तथा ॥ इस भस्म में समान भाग सुहागा मिलाकर गुहस्य काजितु शिप्त्वा मुद्रितभाजने। पानीके साथ पीसकर उसका लेप करके अग्नि में वर्ष स्थापयेद गर्ने तेन सम्पर्दयेदहदम ॥ तपाने से समस्त धातुर्वे द्रुत (पतली) हो जाती नवसार दिवा रात्रौ दाहयेत्कृतमुद्रिकम् । | हैं और वह भी गुल्मादिको नष्ट करती हैं। एवं संमर्दन दार जनपश्चाशदेव तु॥ सहस्म नवसारस्य रक्तिकाद्वितयं मतम् । नवायसचूर्णम् 'सर्वमुल्मोदरध्वंसी सबेरोगान्विनाशयेत् ।। रसप्रकरणमें देखिये। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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