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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्णपकरणम् ] तृतीयो भागः। [१५] - (३४१३) नागकेशरयोगः (१) । (३४१६) नागवलाचूर्णम् (यो. त. । त. ७५; ग. नि. । वन्ध्या; (,. मा.; च. द. । द्रो.) रा. मा. । स्त्रीरा.) मूलं नागबलायास्तु चूणे दुग्धेन पाययेत् । गोघृतेन सह नागकेसरं हृद्रोगकासश्वासघ्नं ककुभस्य च वल्कलम् ॥ श्लक्ष्णचूर्णितमृतौ नितम्बिनी। रसायनं परं बल्यं वातजिन्मासयोजितम् । गव्यदुग्धनिरता पिवेधदा संवत्सरप्रयोगेण जीवेद्वर्षेशतं ध्रुवम् ॥ सा तदा नियतमेव वीरम् ॥ नागबला (गंगेरन ) की जड़ अथवा अर्जुन यदि स्त्री ऋतुकाल में केवल गायके दूध पर की छालका चूर्ण दूधके साथ सेवन करनेसे हृद्रोग ही रहे और गायके घीके साथ नागकेसरके महीन खांसी और श्वास नष्ट होता है। चूर्णको सेवन करे तो वह अवश्य वीर पुत्रको जन्म यह योग रसायन और अत्यन्त बल वर्द्धक है; यदि एक मास तक सेवन किया जाय तो (३४१४) नागकेशरयोगः (२) समस्त वातज रोग नष्ट हो जाते हैं और एक वर्ष (वृ. नि. र.; वं. से. । स्त्री; यो. र.; पर्यन्त सेवन किया जाय तो अवश्य ही १०० भा. प्र. । सोमरोग) वर्षकी आयु प्राप्त होती है। तक्रोदनाहाररता सम्पिबेनागकेशरम् । (३४१७) नागबलायोगः त्र्यहन्तक्रेण सम्पिष्टं श्वेतप्रदरनाशनम् ।। (ग. नि.; रा. मा. । राजय.) यदि तीन दिन तक नित्य प्रति नागकेशर चूणे नागबलायास्तु घृतमाक्षिकमिश्रितम् । को को पीसकर पिया जाय और तक तथा ! पलिह्यात्मातरुत्याय क्षयव्याधिनिवारणम् ।। भात खाया जाय तो श्वेत प्रदर नष्ट हो जाता है। | घृतमाक्षिकसंमिश्रो वाट्यालकरसस्तथा ॥ ( मात्रा-३ माशे ।) नागबला ( गंगेरन ) का चूर्ण या बला (३४१५) नागकेशरादियोगः । (खरैटी) का स्वरस घी और शहदमें मिलाकर । प्रातःकाल सेवन करनेसे क्षय रोग नष्ट होता है। (वं. से. । स्त्रीरो.) नागकेशरपूगास्थिचूर्ण वा गर्भदं परम् ।। ( मात्रा-चूर्ण १॥ से ३ माशे तक । स्वरस नाशा और सपारीका समान भामिश्रित १ स २ ताल तक ।) चूर्ण सेवन करने से गर्भ प्राप्ति होती है। (३४१८) नागवल्लयाचे चूर्णम् ( मात्रा-२-३ माशे । अनुपान गोघृत । ( भै. र. । वीर्यस्त.) ऋतुकालसे आरम्भ करके २ सप्ताह सेवन करना | नागवल्ली बला मूर्वा जातीकोषफले मुरा। चाहिये ।) अपामार्गस्य बीजश्च काकोलीयुगलं तथा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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