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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चूर्णप्रकरणम् ] तृतीयो भागः । [१६३] बञ्जुलकदम्बवदरीतिन्दुकीसल्लकीरोधसावररो- | मुलैठी, कायफल, जलवेत, कदम, बेरी, तिन्दुक (तेंदु ), सल्लकी, लोध, सावरलोघ, भिलावा, ढाक, और तुन वृक्ष । इनके समूहको न्यग्रोधादि गण कहते हैं । भल्लातकपलाशानन्दीदृक्षश्चेति । न्यग्रोधादिर्गणो ण्यः संग्राही भगसाधकः । रक्तपित्तहरो दाहमेदोनो योनिदोषहृत् ॥ बड़, गूलर, पीपल वृक्ष, पिलखन, महुवा, अम्बाड़ा, अर्जुन, आम, बनआम, चोरकपत्र, दो प्रकारके जामनवृक्ष, प्रियाल ( चिरौंजीका वृक्ष ), न्यग्रोधादि गण ब्रणनाशक, संग्राही, मन सन्धानकं, रक्तपित्त नाशक, दाह और मेदको नष्ट करने वाला तथा योनिशोधक है । इति नकारादिकषायप्रकरणम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ नकारादिचूर्णप्रकरणम् (३४१०) नवक्षारकं चूर्णम् ( ग. नि. । परिशि. चूर्णा . ) सुवरीटकूणव्योषसामुद्रं सैन्धवं विडम् । काचं सौवर्चलं चव्यं क्षारश्चेक्षुरकोद्भवः ॥ एतानि समभागानि चूर्णीकृत्य प्रयोजयेत् । रक्तवातारुचिप्लीहोदररोगापनुत्तये ॥ फटकी की खील, सुहागेकी खील, त्रिकुटा, समुद्र लवण, सैंधा नमक, विड नमक, कचलौना ( काचलवण ), सञ्चल ( काला नमक ), चव्यू और ताल मखाने के पौदेका क्षार समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । यह चूर्ण वातरक्त, अरुचि और प्लीहा (तिल्ली ) को नष्ट करता है । (३४११) नवसादरप्रयोगः ( र. का. धे. 1 अ. २२ ) चूर्णस्य पञ्च भागास्तु हण्डिकायां विनिक्षिपेत्। तन्मध्ये नवसारस्य भागैकं दापयेत्सतः || चूर्णस्य पञ्च भागांश्चोपरि तस्य पुनः क्षिपेत् । विमुद्याधः कृते छिद्रे तदधस्थितभाजने ॥ मृत्तिका वस्त्रलिप्तेऽस्मिन्छुष्के गर्ने निधापयेत् । वहिं दद्यात्तदुपरि यामपोडशमानतः ।। शीतं तद्भस्म गृहणीयादधः पात्रे द्रुतं द्रवम् । भृष्टहिङ्गुत्र्यूषणयुतं माषयुग्मप्रमाणतः ॥ सर्वगुल्मोदरध्वंसि वह्निमान्धविनाशनम् ॥ | ( मात्रा --- १ माशा । अनुपान उष्णजल ) नोट - इस प्रयोगमें त्रिकुटा और चीते का भी क्षार ही डालना चाहिये, तभी ९ क्षार हो सकते हैं । एक हाण्डी की तली में एक छोटासा छिद्र करें और फिर उस पर ३-४ कपड़ोटी ( कपड़मिट्टी ) करके उसमें ५ भाग चूना बिछाकर उसके ऊपर भाग नौसादर रक्खें और फिर उसके ऊपर ५ भाग चूना और बिछा दें और हण्डीका For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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