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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[नकारादि
(३४०४) नीलिनीमूलकल्कः ।
नीलकमल, अर्जुनकी छाल, इन्द्रजौ, वध, (ग. नि; रा. मा. । सर्पविष.) इमलीकी छाल, आमला, और नीमके पत्तों के तन्दुलजलेन पिष्ट नीलिन्या मलमाशु नाशयति। काथमें खांड मिलाकर पीनेसे पित्तप्रमेह नष्ट पानेन मण्डलिविषं यदि वा लज्जावतीमूलम् ।। ।
नीलिनी ( नीलवृक्ष ) या लज्जालकी जडको (३४०७) नीलोत्पलादिकाथः (२) तण्डुलोदक ( चावलोंके धोवन ) के साथ पीसकर
(हा. सं. । स्था ३ अ. ३१) पीनेसे मण्डली सर्पका विष तुरन्त नष्ट हो नीलोत्पलमुशीरं च पथ्यामलकमुस्तकम् । नाता है।
पिबेत्पित्तप्रमेहातः काथं मधुविमिश्रितम् ।। (३४०५) नीलोत्पलादिकषायः
नीलकमल, खस, हरे, आमला और नागर(वृ. नि. र.; वं. से.; ग. नि. । ज्वर.)
मोथेके काथमें शहद मिलाकर पीनेसे पित्तप्रमेह
नष्ट होता है। नीलोत्पलमुशीराणि पद्मकामलकानि च ।
(३४०८) नीलोत्पलादिहिमः काश्मीरमधुकद्राक्षामधूकानि परूषकान् ॥
| ( वृ. नि. र. । ज्वर; शा. सं. । म. ख. अ. ४) पिवेच्छीतं कषायं च वातपित्तज्वरापहम् ।।
नीलोत्पलं बला द्राक्षा मधुकं मधूकं तथा । सम्पलापं च सम्मोहं शमयेत्पैत्तिकं ज्वरम् ॥
उशीरं पद्मकं चैव काश्मरी च परूषकम् ।। नीलकमल, खस, पाक, आमला, खम्भारोके ।
एतच्छीतकषायश्च वातपित्तज्वरं हरेत् । फल, मुलैठी, द्राक्षा ( मुनक्का), महुवा और फालसे
विमलापभ्रमच्छर्दीमोहतृष्णानिवारकः॥ के फल समान भाग मिश्रित २ तोले लेकर
___नीलकमल, खरैटी, मुनक्का (दाख ), मुलैठी, रातको १२ तोले पानी में मिट्टी के बरतनमें
महुवा, खस, पाक, खम्भारी और फालसे के फल भिगोकर रख दें और प्रातःकाल मल छानकर
समान भाग मिश्रित २ तोले लेकर रातको १२ रोगीको पिलावें।
तोले पानीमें भिगो दें और प्रातःकाल मल छानयह कषाय वातपित्तज तथा पित्तज ज्वर, कर रोगीको पिलावें। प्रलाप और मोहको नष्ट करता है।
यह कषाय वातपित्तज्वर, प्रलाप, भ्रम, छर्दि, (३४०६) नीलोत्पलादिक्वाथः (१)
| मूर्छा और तृष्णाको नष्ट करता है। ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ३१)
(३४०९) न्यग्रोधादिगणः नीलोत्पलार्जुनकलिङ्धवाम्लिकानाम् । __(वा. भ. । सू. अ. ३५; सु. सं. । सूत्र. धात्रीफलानि पिचुमन्ददलानि तोये ॥
अ. ३८) निकाध्य शर्करयुतोमनुजस्य पानात् । न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्लक्षमधूफकपीतनककुभाम्रपित्तप्रमेहशमनाय वदन्ति धीराः॥ कोशाम्रचोरकपत्रजम्बूद्वयमियालमधुकरोहिणी
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