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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कायमकरणम् ] हतीयो भागः। [ १६१] नीबूके रसमें तिन्तडीक पीसकर पिलानेसे | पीतो निहन्ति कफमारुतकोपजातं विचिका की तृषा शान्त होती है । तथा मूत्यामयं सकलमेव सुदुस्तरश्च ॥ सुहागेकी खील दूधके साथ देनेसे पिपासा और | संभाल, ल्हसन और सोंठ के मन्दाष्ण काथबमन रुक जाती है। में पीपलका चूर्ण मिलाकर पिलानेसे कफवातज (३३९९) निर्गुण्डीस्वरसप्रयोगः कष्टसाध्य सूतिका रोग (प्रसूत) नष्ट होता है । (4. से. । स्नायु.) (३४०२) निशादि कायः मन्य सर्पिरल्या पीत्वा निर्गुण्डीस्वरसं त्र्यहम् ।। ( वृ. नि. र. । मसुरिका.) पिवेत्स्नायुफमा इन्त्यवश्यं न संशयः॥ प्रथम ३ दिन तक गायका घृत पीने के निशाद्वयोशीरशिरीषलुस्तैः परमात् ३ दिन तक संभालुका रस पीनेसे कष्ट __ सलोध्रभद्रश्रियनागकेसरैः। साध्य स्नायुक भी अवश्य नष्ट हो जाता है। पटोलमूलारुणतन्दुलीयकैः पिद्धरिदामलकल्कसंयुतम् ॥ (३४००) निर्गुण्डयादिकषाय: मसूरिविस्फोटविसर्पशान्तये (ग. नि. । कृमि.) निर्गुडिशिबुयुतकफट्लजः कषायः । तथा सरोमान्त्यवमिज्वरापहः॥ हल्दी, दारुहल्दी, खस, सिरसकी छाल, कृष्णाकृमिघ्रफलकल्कयुतः प्रपीतः।। कायात कृमीनपहरेत् क्रिमिजांश्च रोगान । नागरमोथा, लोध, सफेदचन्दन, नागकेसर, पटोलफायः क्रिमिनसुरसाजेकजोऽथ पीतः ॥ की जड़, अतीस और चौलाई के काथमें हल्दी तथा आमलेका कल्क मिलाकर पिलानेसे मसूरिका, ___ संभाल, सहजनेकी छाल, और कायफल के कायमें पीपल, वायविडंग तथा मैनफलका कल्क विस्फोटक, विसर्प और वमन तथा ज्वर युक्त रोमान्तिका नष्ट होती है । मिलाकर पीनेसे शरीरसे कृमि निकल कर कृमिजन्य रोग नष्ट हो जाते हैं। (३४०३) नीरदादिकाथ: वायविडंग, बावई ( छोटी तुलसी ), और (वृ. नि. र. । ज्वर.) तुलसी का काम भी कृमिजन्य रोगोंको नष्ट नीरदविश्वदुरालभावासा साधितमम्मु हि पाचनमेष । (३४०१) निर्गुण्मयादिकाय: पेयमिदं ज्वर एव कफाख्ये (यो. र. । सूतिका; वृ. यो. त. । त. १४२; श्वासकासघनशूलहरन । बो. त. । त. ७५ ) नागरमोथा, सोंठ, धमासा और बासा। इनका संपोषितो दलितया कणया कबोष्णो काथ पाचन तथा कफजज्वर, श्वास, खांसी और मिमिकामशुमनागरजः कषायः। शूल नाशक है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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