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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१६०] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [ नकारादि (३३९५) निम्बादिप्रयोगः (२) कण्डूदुम्बरपुण्डरीकालसकाः कुष्ठामयाः पापजाः। (वं. से. । स्त्रीरोगा.) . नश्यन्ति द्रुतमेव दारुणतराः प्रोद्यमानाऽनलः । निम्बवल्कलकल्कस्तु सर्पिषा काञ्जिकेन तु । ज्वालादग्धमतप्तकाश्चनसमान्यङ्गानि राजन्ति च पीतः प्रशान्तयेन्नूनमचिरात्मृतिकागदम् ॥ काथोऽयं मुनिभिर्दयाम निपुणैरुक्तो नृणां हेतवे।। नीमकी छालको पानीके साथ पीसकर घीमें नीमकी छाल, अरण्डमूल, धमासा सुगन्धवाला, मिलाकर काञ्जीके साथ पीनेसे सूतिका रोग बच, मूर्वा, हल्दी, दारुहल्दी, त्रायमाणा, हरे, (प्रसूत ) शीघ्र ही अवश्य शान्त हो जाता है । बहेड़ा, आमला, पटोल, चीता, बकायनकी छाल, ( मात्रा-छाल आधा तोला, घी २ तोले ।) गिलोय, भरंगी, काकोदुम्बरिका ( कठूमर ) की (३३९६) निम्बादिप्रयोगः (३) छाल, करञ्ज बीज, खैरसार, शाखोटक (सिहोड़ा) (वं. से. । छर्दि.) की छाल, सतौना ( सप्तच्छद ) की छाल, कटेली, निम्बाम्रपल्लवगवेधुकधान्यमेव कटेला, सिरसकी छाल, बेत, पीपल, चिरायता, हीवेरवारि मधुना पिवतोऽल्पमल्पम् । इन्द्रजौ, पवांड़के बीज, बाबची, कुशकी जड़, गजछर्दिप्रयाति शमनं त्रिसुगन्धियुक्ता पीपल, नल, पाठा, पित्तपापड़ा, इन्द्रायण, बासा, लीढा निहन्ति मधुना सदुरालभा वा॥ दन्ती, निसोत, लालचन्दन, मजीठ, कूठ, जवासा, नीम और आमके पत्ते, नागबला ( गंगेरन ), तेजपात, कुटकी अमलतास, और पीपलामूल । धनिया और सुगन्ध बालाके काथमें शहद डाल सब चीजें समान भाग लेकर अधकुटा करके रक्खें । कर थोड़ा थोड़ा पीनेसे या दालचीनी, इलायची, तेजपात और धमासेका चूर्ण शहदमें मिलाकर इनमें से नित्य प्रति २ तोले लेकर ३२ चाटने से छर्दि नष्ट होती है । तोले गोमूत्र में पकावें और ८ तोले शेष रहने (३३९७) निम्बादिमहाकषायः पर छान कर पियें। (वं. से. । कुष्ठ.) इसके सेवनसे खुजली, उदम्बर कुष्ठ, पुण्डनिम्बरण्डदरालभार्भकवचामहरिद्राद्वयम। रीक कुष्ट, अलसक ( खारवा ) आदि समस्त त्रायन्तीत्रिफलापटोलदहनद्रेकामृताभार्जिभिः॥ कुष्ठ शीघ्र ही नष्ट होकर देह तप्त काश्चनके समान काकोदुम्बरिकाकरञ्जखदिरैःशाखोटसप्तच्छदैः। शुद्ध हो जाती है । व्याघीसिंहिशिरीषवेतसकणाभूनिम्बशक्राहयैः॥ (३३९८) निम्बुरसादिप्रयोग: मपुन्नाटकबाकुचीकुशजटामातङ्गकृष्णानलैः। (यो. र. । विशू.) पाठापर्पटकेन्द्रवारुणीषादन्तीत्रिच्चन्दनैः॥ निम्बूरसश्चिश्चिणिकासमेतो मञ्जिष्ठाऽऽभययासवासकटुकाराजद्रमग्रन्थिकैः। विचिकाशोषहरः प्रदिष्ट । तुल्यांशैः सुरभीजलेन पिबतां सिद्धं कषायं दुग्धेन पीतो यदि टङ्कणोऽसौ नृणाम् ।। प्रशामयेद्वै वमनं निरूध्यात् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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