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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपायप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [१५७] (३३७७) निदिग्धिकादिकाथः (३) (३३८०) निदिग्धिकादिस्वरस: (ग. नि.; रा. मा. । ज्वरा.) (वं. से. । मूत्रकृच्छ्) निदिग्धिकावारिददेवदारु निदिग्धिकायाः स्वरसं कुडवं मधुसंयुतम् । मृतं जलं हन्ति रुजो ज्वरोत्थाः। मुत्रदोषहरं पीत्वा नरः सम्पद्यते सुखम् ।। मृणालमुस्तासहितं कदाचि __ कटेलीके २० तोले स्वरसमें शहद मिलाकर तदेव इन्ति कथितं ज्वरात्तिम् ॥ पीनेसे मूत्रकृच्छू नष्ट होता है। कटेली, नागरमोथा और देवदारुका काथ (व्यवहारिक मात्रा ४-५ तोले । ) या कमलनाल और नागरमोथेका काथ ज्वरको (३३८१) निदिग्धिकास्वरसप्रयोगः नष्ट करता है। (वं. से.; यो. र. । मूत्राघाता.) निदिग्धिकायाः स्वरसं पिबेदा तक्रसंयुतम् । (३३७८) निदिग्धिकादिकाथः (४) जले कुङ्कुमकल्कं वा सक्षौद्रमुषितं निशि ॥ (ग. नि. । ज्वरा.) मृतशीतपयोमाशी चन्दनं तण्डुलाम्बुना। निदिग्धिकामृताशुण्ठीपुष्कराहैः कृतं पिबेत् । पिबेत्सशर्करां श्रेष्ठामुष्णवाते सशोणिते ॥ कायं कासारुचिश्वासकफवातज्वरापहम् ॥ । कटेलीके स्वरसमें समान भाग तक मिलाकर . कटेली, गिलोय, सांठ और पोखरमूलका काथ पियें अथवा रातको केसर पानीके साथ पीसकर खांसी, अरुचि, श्वास और कफवातज ज्वरको नष्ट शहदमें मिलाकर रखदें और उसे प्रातः काल चारें करता है। या सफेद चन्दन को तण्डुलोदक ( चावलेके (३३७९)निदिग्धिकादिप्रयोगः धोवन ) के साथ पियें अथवा त्रिफला और खांड समान भाग मिलाकर सेवन करें । यह सब प्रयोग (ग. नि. । स्वरभङ्ग.) रक्तयुक्त उष्णवात (सोज़ाक ) को नष्ट करते हैं। निदिग्धकापणवालबिल्व (पथ्य-गरम करके ठण्डा किया हुवा दूध कल्कं च लिखान्मधुना समेतम् । और भात) फलत्रिकत्र्यूषणयावशूक (३३८२) निम्बस्वरसपानम् चूर्णश लियात्स्वरभेदहन्त ॥ (यो. चि. । मिश्र.) कटेली, सोंठ, मिर्च, पीपल और बेलगिरी को रसोनिम्बस्य मञ्जर्याः पीतश्चैत्रे हितावहः । पानीके साथ पत्थर पर पीसकर शहदमें मिलाकर | हन्ति रक्तविकारांश्च वातपित्तं कर्फ तथा ॥ चाटनेसे या हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च, पीपल चैतके महीनेमें नीमके फूलोंका स्वरस पीनेसे और जवाखारका चूर्ण शहदके साथ चाटने से वातज, पित्तज और कफज रक्तविकार नष्ट स्वरभङ्ग नष्ट होता है। होते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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