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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१५६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [नकारादि - (३३७१) नागरादिपाचनकाय: कटेली, त्रायमाणा, गिलोय, सारिवा, खरैटी (हा. सं. । स्था. ३ अ. २) और मसूरकी दालका काथ वातपित्त-ञ्चरको नष्ट नागरं भद्रतुस्ता वा गुडूच्यामलकाहयम् । करता है। पाठामृणालोदीच्याश्च कायः पित्तज्वरे कफे॥ पाचनो दीपनीयः स्याद्रक्तशोषनिवारणः॥ । (३३७५) निदिग्धिकादिकायः (१) सोंठ, नागरमोथा, गिलोय, आमला, पाठा, (बृ. यो. त.। त ५९; भै. र.; वं. मा.; धन्वं.; कमलनाल और सुगन्धबाला; इनका काथ पित्त र. र.; ग. नि.; च. द. । ज्वरा.; शा. ध.। कफज ज्वर, और रक्तशोषको नष्ट और अग्निको दीप्त ___म. अ. २; हा. सं. । स्था., ३ अ. २; करता तथा दोषोंको पचाता है। भा. प्र. । ख. २ ज्व.; वै. र. । ज्व. ) (३३७२) नागराधाश्च्योतनम् निदिग्धिकानागरकामतानां (वा. भ. । उ. स्था. अ. १६) काथं पिबेन्मिश्रितपिप्पलीकम् । नागरत्रिफलानिम्बवासारोधरसं कफे। जीर्णज्वरारोचककासशूलकोष्णमाश्च्योतनं मित्रैर्भेषजैः सान्निपातिके ॥ श्वासाग्निमान्यादितपीनसेषु ॥ कफज नेत्राभिष्यन्द रोगमें सेठ, त्रिफला, कटेली, सेठ, और गिलोयके काथमें पीपलका नीमके पत्ते, बासा और लोधके मन्दोष्ण काथसे चूर्ण मिलाकर पीनेसे जीर्णज्वर, अरुचि, खांसी, और सन्निपातज अभिष्यन्दमें तीनों दोषांको नष्ट शूल, श्वास, अग्निमांद्य, अर्दित और पीनसका नाश करनेवाली ओषधियां मिलाकर उनके काथसे आश्च्यो- होता है। तन करना चाहिये । (काथकी बूंदें आंखोंमें। (३३७६) निदग्धिकादिकाय: (२) टपकानी चाहियें ।) (ग. नि. । शूला.) (३३७३) नारिकेलपुष्पादिकाय: निदिग्धिकायुगलपुष्करमातुलुङ्ग (वै. म. र. । पट. १३) बिल्वामूलसहितोपलभेदयुक्तम् । तरुणैर्नारिकेलस्य पुष्पैरौदुम्बरैः फलैः । कायं च गोक्षुरयुतं सकलिङ्गमूलं अब्दैश्च कल्पितः काथो गर्भद्रावं निवर्तयेत् ॥ सेवेत्तया यवजहिङ्गमयं प्रपकम् ॥ .. नारयलके नवीन पुष्प और गूलरके फल तथा नागरमोथेका काथ पीनेसे गर्भस्राव रुक जाता है। छोटी कटेली, बड़ी कटेली, पोखरमूल, बिजौर (३३७४) निदिग्धिकादिकषायः की जड़, बेलकी जड़की ताजी छाल, पखानबेद (ग. नि. । ज्वर.) (पाषाण भेद ), गोखरु, और कुड़ेकी जड़की छाल; निदिग्धकात्रायमाणागुडूचीसारिवाबला ।। इनके काथमें जवाखार और हींग मिलाकर पीनेसे मसूरविदलैर्युक्तो वातपित्तज्वरे हितः । । शूल नष्ट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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