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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[धकारादि
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आमलेके रसमें मिश्री मिलाकर पीनेसे या । आमला, नागरमोथा, और हल्दी का काथ सूर्यकान्ताकी जड़को चावलों के पानीके साथ | पीने या काकोली और गिलोयके काथमें पीपल पीसकर पीनेसे योनिकी दाह नष्ट होती है । । का चूर्ण मिलाकर बलोचित मात्रानुसार पीने (३२४७) घात्र्यादिकाथः ( लघु ) (१) और पथ्य पालन करनेसे २१ दिन में कफ प्रधान
(भै. र.; धन्वं. । मूत्रकृ.) | वातरक्त रोग नष्ट हो जाता है। धात्री द्राक्षा विदारीच यष्टयाहा गोक्षुरं तथा। | (३२५०) धात्र्यादिकाय: (४) एभिःकषायं विपचेत् पिबेत् शीतं सशर्करम् ॥ (. मा.; च. द.; ग. नि. । कुष्ठ.) अपि योगशतासाध्यं मूत्रकृच्छ्रे जयेल्लघु ॥ धात्रीखदिरयोः काथं पीत्वाऽवल्गुजसंयुतम् । ___ आमला, दाख (मुनक्का), विदारीकन्द, मुलैठी शन्दुधवलं श्वित्रं तुर्ण हन्ति न संशयः॥ और गोखरु के काथको ठण्डा करके उसमें
'आमला और खैरसारके काथमें बाबचीका खांड मिलाकर पीनेसे सैकड़ों योगेांसे आराम न
चूर्ण मिलाकर पीनेसे शंखके समान सफ़ेद श्वेत होने वाला मूत्रकृच्छू भी नष्ट हो जाता है।
कुष्ठ भी शीघ्र ही अवश्य नष्ट हो जाता है । (खांड काथका ८ वां भाग मिलावें।)
(३२५१) धात्र्यादिकाथः (५) (३२४८) धात्र्यादिकाथा (बृहद् ) (२)
(वं. से. । शिरोरो.) (भै. र. । मू. कृ.) . धात्री द्राक्षा च यष्टयाहं विदारी सत्रिकण्टका। धात्र्यक्षपथ्यासनिशागुडूची दर्भेक्षुमूलमभया काथयित्वा जलं पिबेत ॥
भूनिम्बनिम्बैः कथितः पडा। ससितं मूत्रकृच्छ्रनं रुजादाहहरं परम् ।। भ्रूशलकर्णाक्षिशिरोर्दशूले ____ आमला, दाख (मुनक्का), मुलैठी, बिदारी
सूर्योदये शङ्खकमर्द्धभेदे ।। कन्द, गोखरु, दाबकी जड़, ईखकी जड़, और नक्तान्ध्यकाचे पटले सशुक्रे हस्के काथको ठण्डा करके उसमें खांड मिलाकर पाकेऽश्रुपाते तिमिरेऽसिरोगे। पीनेसे मूत्रकृच्छ, पेशाबकी जलन और पीड़ा शान्त | पक्ष्मप्रकोपे विनिहन्ति चैष होती है।
सद्यो गदं वायुरिवाभ्रवन्दम् ।। (खांड काथका ८ वां भाग मिलावें।) आमला, बहेड़ा, हर्र, हल्दी, गिलोय, चिरा(३२४९) धात्र्यादिकाथः (३) | यता और नीमकी छाल । सब समान भाग मिला(वृं. मा. । वातर.)
| कर २॥ तोले लें और ४० तोले पानीमें पकाधात्रीमुस्ताहरिद्राणां कषायं वा कफाधिके। | कर १० तोले शेष रक्खें । कोकिलाख्याऽमृताका पिवेत्कृष्णां यथा वलम्॥ इसे पीनेसे भौं, शंख (कनपटी) कान, आंख पथ्यमोजी त्रिसप्ताहान्मुच्यते वातशोणितात् ।। और आधे शिरमें होने वाला शूल; सूर्यावर्त, रात्र्य
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