SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कायमकरणम् ] तृतीयो भागः। [१२५] न्धता ( रतौंधा), कांच, पटल, नेत्रशुक्र, नेत्रपाक, | (३२५५) घाच्यादियोगः (१) अश्रुनाव, तिमिर, और पक्ष्मप्रकोपादि शिर तथा (ग. नि. । छर्घ.) नेत्रोंके रोग नष्ट हो जाते हैं । पिष्ट्वा धात्रीफलं लाक्षाशर्करां च पलोन्मिताम् (३२५२) धाच्यादिकाथः (६) दत्त्वा मधुपलं चात्र कुडवं सलिलस्य च ॥ (वैद्यामृत । वि. २७) वाससा गालित पीतं हन्ति छर्दैि त्रिदोषजम् । धात्र्याः कषायं मधुरात्रियुक्तं __ आमला, लाख और खांड एक एक पल __ वटाकुराणां समधु कषायम् । लेकर पानीके साथ महीन पीसें फिर उसमें १ पल पाषाणभेदं मधुमिश्रमेतत् (५ तोले ) शहद और २० तोले पानी मिलाकर त्रयं प्रमेहापहमामनन्ति ॥ कपड़े से छान लें। इसके पीनेसे त्रिदोषज छर्दि आमले के काथमें शहद और हल्दीका चूर्ण नष्ट होती है। मिला कर, या बड़के अंकुरेकेि अथवा पाषाण भेद (३२५६) धात्र्यादियोगः (२) (पखान भेद ) के काथमें शहद डालकर पीनेसे (ग. नि. रसा.; वा. भ. । उ. अ. ३९) प्रमेह नष्ट होता है। धात्रीरसक्षौद्रसिताघृतानि हिताशनानां लिहतां नाराणाम् । (३२५३) धाब्यादिकायः (७) प्राणाशमायान्ति जराविकारा (बृ. नि. र.; यो. र. । हिक्का.) __ ग्रन्या विशाला इव दुर्ग्रहीता ॥ पात्री च मागधी शुण्ठी काथश्चैषां सितायुतः।। आमलेका रस, शहद, मिश्री और घी समान हिनस्ति हृदयोद्भूतां हिक्कां प्राणपनोदिनीम्॥ भाग मिलाकर पथ्य पालन पूर्वक सेवन करनेसे ___ आमला, पीपल, और सोंठ के काथमें खांड वृद्धावस्थाजनित समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं। मिलाकर पीनेसे हृदयसे उठने वाली तथा प्राणोंको (३२५७) धान्यादिस्वरसः सङ्कट में डाल देनेवाली हिचकी भी नष्ट हो जाती है। (ग. नि.; शा. सं. । कुष्ठ.) (३२५४) धात्र्यादिप्रयोगः रसं हि धात्र्यक्षहरीतकीनां __ (. मा.; ग. नि. । शूला.) पृथक् पृथक् यन्त्रनिपीडितानाम् । धान्या रसं विदार्या वा त्रायन्तीयोस्तनाम्बुना । क्षौद्रान्वितं चैव पिबेत्तु पक्षं पिषेत्सशर्करं मधं पित्तशूलनिघूदनम् ॥ पथ्यान्न कुष्ठनिवर्हणाय ॥ त्रायमाणा और मुनक्का के काथमें अथवा । आमला, हर्र और बहेड़े से किसी एकके आमले या बिदारीकन्दके स्वरसमें खांड और शराब स्वरसमें शहद मिलाकर १५ दिन तक पीने और मिला कर पिलानेसे पित्तज शूल नष्ट होता है। पथ्य पालन करनेसे कुष्ठ रोग नष्ट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy