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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१२२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [धकारादि अथ धकारादिकषायप्रकरणम् (३२३५) धत्तूरयोगः धव, अर्जुन, कदम्ब, जामन और आमकी (रा. मा. । विष.) छाल तथा मनसिल, और कसीसके काथमें सेंधा उन्मत्तकस्य स्वरसं पयश्च नमक, गुड़ और घी मिलाकर पीनेसे क्षतज खांसी नष्ट होती है। सर्पिगुडश्चेति विमिश्रितानि । पिबेत्पलद्वन्द्वमितानि यत्ना (३२३८) धवादिकाथः (३) दुन्मत्तकौलेयकदष्टगात्रः॥ (हा. सं. । स्था. ३ अ. ३१) धवार्जुनकदम्बानां बदरी खदिरशिंशपे । धतूरेका स्वरस, दूध, घी और गुड़ २-२ पल (१०-१० तोले ) लेकर सबको एकत्र पारिभद्रकमेतेषां मेहनस्य प्रधावनम् ॥ मिला कर पिलाने से उन्मत्त कुत्तेका विष नष्ट | अर्जुनस्य कदम्बस्य टिण्टुकी वान्तरत्वचा। होता है। पाके पूयविशोधार्थ मेहनस्य प्रशस्यते ॥ धव, अर्जुन, कदम्ब, बेरी, खैर, सीसम और (३२३६) धवादिकाथः (१) (हा. सं. । स्था. ३ अ. ४) पारिभद्र ( नीम या फरहद ) की छालके काथसे या अर्जुन, कदम्ब और टेंटुकी अन्तर्जाल के क्वाथसे धवार्जुनकदम्बानां शिरीषबदरीसह । निकाथ्य पानमामघ्नं विषूच्याः शूलवारणम् ।।। धोनेसे लिङ्गका घाव शुद्ध होता है । धव, अर्जुन, कदम्ब, सिरस और बेरीकी (३२३९) धातक्यादिक्काथ: (१) छालका काथ पीनेसे आम और विसूचिका का (वै. जी. । वि. १) विषममपि हरत्यसौ कषायो शूल शान्त होता है। मधुमधुरो मदिरामृताशिवानाम् । (३२३७) धवादिक्काथः (२) | अहमिव सततं तत्र प्रकोपं (हा. सं. । स्था. ३ अध्या. १२) चरणसरोरुहयो ठन्हठेन ।। धवार्जुनकदम्बानां जम्ब्बाम्रत्वक् च तत्समम् । धायके फूल, गिलोय और आमलेके काथको मनःशिला सकासीसं कायं कृत्वा ससैन्धवम्॥ शहदसे मीठा करके पीनेसे विषम ज्वर अवश्य नष्ट गुडेन सर्पिषा युक्तं हन्ति कासं क्षतोद्भवम् ।। | हो जाता है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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