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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] सृतीयो भागः। [११५] शोथं नानाविधं हन्ति ग्रहणीं विषमज्वरम् । सबके महीन चूर्णको १ दिन भांगके रसमें घोटमन्दाग्निं पाण्डुरोगश्च नाना दुग्धवटी परा ॥ कर मूंगके बराबर गोलियां बनावें । वर्जयेल्लवणं वारि व्याधिनिःशेषतावधिः ।। इन्हें शोथमें दूधके और संग्रहणीमें भांगके शुद्ध वछनाग (मीठातेलिया) और अफीम काथ के साथ देना चाहिये । पथ्यमें केवल दूध १२-१२ रत्ती, लोहभस्म ५ रत्ती, तथा अभ्रक या दूधभात देना चाहिये और लवण तथा जल भस्म ६० रत्ती लेकर सबको दूधमें घोटकर २-२ | बिल्कुल बन्द करके प्यासमें भी दूध ही देना रत्तीकी गोलियां बनवावें। चाहिये । अगर अत्यधिक पिपासा हो और दूधसे __इन्हें दूधके साथ खिलानेसे अनेक प्रकारका काम न चले तो नारियलका पानी दे सकते हैं। शोथ, संग्रहणी, विषमज्वर, मन्दाग्नि और पाण्डुका इनके सेवनसे शोथ, संग्रहणी, अतिसार नाश होता है। और जीर्णज्वर नष्ट होता है । पथ्य-केवल दूध या दूध भात ।। परहेज़-रोग नष्ट होने तक लवण और (३२१५) दुर्जलजेतारसः जल बिल्कुल न देना चाहिए । (अगर जल बिना ( वृ. यो. त. । त. ६२; र. चं.; वै. रह.; यो. र.: न रहा जा सके तो थोड़ा थोड़ा नारियलका पानी वृ. नि. र. । ज्वर.) दे सकते हैं । ) विषं भागद्वयं दग्धकपर्दः पञ्चभागिकः । (३२१४) दुग्धवटी (३) मरिचं नवभागश्च चूर्ण वस्त्रेण शोधयेत् ॥ (भै. र. । शोथा.) आर्द्रकस्य रसेनास्य कुर्यान्मुद्गनिभा वटीम् । गृहीत्वा दरदात्कर्ष तदर्द देवपुष्पकम् । वारिणा वटिकायुग्मं प्रातः सायं च भक्षयेत् ॥ फणिफेनं विषं जातीफलं धुस्तूरबीजकम् ॥ | अयं रसो ज्वरे योज्यस्तस्मिन्दुर्जलजेऽपि च । सम्मर्थ विजयाद्रावैर्मुद्गमात्रां वटीश्चरेत् । अजीर्णाध्मानविष्टम्भशूलेषु श्वासकासयोः॥ अनुपानं प्रदातव्यं शोथे क्षीरं भिषग्वरैः ॥ भोजनादौ नरैर्भुक्तं शुण्ठीराज्यभयोत्थितम् । ग्रहण्यां विजयाकाथः पथ्यं दुग्धानमेव हि। | कल्कं तु सहते नित्यं नाना देशोद्भवं जलम् ।। जलश्च लवणचापि वर्जनीयं विशेषतः ॥ महाकयवक्षारौ पीत्वा चोष्णेन वारिणा। प्रबलायामुदन्यायां सलिलं नारिकेलजम् । | नानादेशसमुद्भूतं वारिदोषमपोहति ।। पासन्यं वटिका चैषा शोथं हन्ति न संशयः॥ शुद्ध बछनाग ( मीठा तेलिया ) २ भाग, ग्रहणीमतिसारश्च ज्वरं जीणे निहन्ति च ॥ कौड़ी भस्म ५ भाग, और काली मिर्चका चूर्ण ९ शुद्ध शिंगरफ (हिंगुल ) १ कर्ष तथा लौंग, भाग लेकर सबको अत्यन्त महीन खरल करके शुद्ध अफीम, शुद्ध बछनाग ( मीठातेलिया ), जाय- कपड़ेसे छान लें फिर उसे अद्रकके रसमें घोटकर फल, और शुद्ध धतूरे के बीज आधा आधा कर्ष लेकर मूंगके बराबर गोलियां बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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