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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [११६] भारत-भैरज्य-रत्नाकरः। [दकारादि . इनमेंसे २-२ गोली प्रातः सायं पानीके। इसे सेवन करनेसे फिरंग ( आतशक ) रोग साथ सेवन करनेसे दुष्ट जलके विकारसे उत्पन्न | नष्ट होता है। हुवा ज्वर तथा अजीर्ण, अफारा, कब्ज, शूल, (सब औषधेको गुलाबके अर्क में खरल श्वास और खांसी जादि रोग नष्ट हो जाते हैं। करके २-२ रत्ती की गोलियां बनावें और प्रातः___ भोजनके पहिले सांठ, राई और हरकी चटनी काल १ गोली मुनकामें रखकर रोगीको इस तरह खानेसे अथवा बन अद्रक और जवाखारका निगलवा दें कि दांतों को न लगे । पथ्यमें केवल चूर्ण गर्म पानीके साथ खानेसे भिन्न भिन्न देशों बेसनकी रोटी और घी दें । लवण, खटाई, मिर्चके पानीका असर नहीं होता । अर्थात् परदेशका | आदि बिल्कुल न दें। प्रायः २१ दिनमें रोग पानी नहीं लगता। जाता रहता है।) (३२१६) दुर्लभो रसः (३२१८) देवभूतिरसः __(र. रा. सु. । मसूरि.) (र. चि. । स्त. ४) तत्तानं च पुनर्षीमान्भावयेत्रिफलाम्पुभिः । अयं शुदस्य सूतस्य मूञ्छितस्य मृतस्य च । काकमाच्या रसेनापि भावनीय अयं प्रयम् ॥ द्विवल्लो पिप्पली धात्री खासघृतमाशिकः ॥ धसूरस्य रसेनापि भृाराजरसेन च । पापरोगान्तको योग पृथिव्यामेव दुर्लभः ॥ बीजपूररसस्यापि तिस्रो देयाः पृथक् पृथक् ॥ २ वल्ल (६ रती) पारद भस्म, पीपल, | आईकस्य रसेनाय नववार विभाव्य च । आमला और रुद्राक्षके चूर्णको शहद और धीमें नववार पुटेत्पश्चात्क्रमशो बुद्धिमानरः॥ मिलाकर उसके साथ खिलानेसे मसूरिका शान्त | शुदलोहं समं तेन तावस्म रसस्य च । हो जाती है। निक्षिप्य मर्दयेत्खल्वे चतुर्गजामितं ददेत् ॥ ( व्यवहारिक मात्रा-१ से २ रत्ती तक।) | | त्रिकटु त्रिफला जातीफलं चेव लवाकम् । (३२१७) कुसुमादिगुटिका समभागं कृतं चूर्ण पर्णखण्डेन दापयेत् ॥ ( अनु. त. ।) मुखशुद्धयर्थमप्येव पुनस्ताम्बूलचर्वणम् । समिपातेऽपि सजाते ज्वरे घोरेऽमिसादने । कस्तूरिका चन्दनदेवाष्ये कुष्ठे दुष्टे प्रदातव्य उन्मादे वाप्यपस्मृतौ । सबहुमेरम्नविलोचने यः। | सामे निरामे सयवा कासे श्वासे विशेषतः ॥ कर्पूरक पारदसम्भवं ना पाण्डुरोगे तथा देयश्चोदरे भृशदारुणे ।। निवपन्समयते फिरणम् ॥ वलीपस्तिक हन्यात्खालिल विशेषतः ॥ कस्तूरी, सफेद चन्दन, लौंग, केसर, और वज्रकायो भवत्येव निरपायो विशेषतः । शुद्ध रस कपूर समान भाग लेकर एकत्र खरल करें। दीर्घायुः कामरूप: स्यात्स्त्रीणामत्यन्तवल्लभः ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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