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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [११४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि - नीबूके रसमें ३ दिन, कांटे वाली चौलाई के रसमें इसे २ रत्तीकी मात्रानुसार धीमें मिलाकर ३ दिन, घी कुमारके रसमें ३ दिन, बकरीके | खानेसे पित्तगुल्म नष्ट होता है । मूत्रमें २ दिन और गोमूत्रमें ३ दिन पर्यन्त अनुपान-दाख ( मुनक्का) और हर्रका निरन्तर घोट कर उसमें १-१ भाग सेंधा नमक | काथ। चीता, और सश्चल (काला ) नमकका चूर्ण मिला | (३२१२) दुग्धवटी (१) कर पुनः उपरोक्त ओषधियोंके रसोंमें उतने ही . ( मै. र. । शोथ. ) उतने दिन घोटें। अमृतं धूर्त्तवीजश्च हिङ्गलश्च समं समम्। इसमेंसे ९ रत्ती रस खांड और घीके साथ धूर्तपत्ररसेनव मईयेद्याममात्रकम् ॥ खिलानेसे समस्त प्रकारके ज्वर नष्ट हो जाते हैं। मुद्गोपमा वटीं कृत्वा दुग्धेन सह पाययेत् । पथ्य-गेहूं, चावल, उड़दकी दाल, बथुवे दुग्धेन भोजयेदमं वर्जयेल्लवणं जलम् ॥ का शाक तथा आमला। शोथं नाना विधं हन्ति पाण्डुरोगं सकामलम् । ( व्यवहारिक मात्रा-४ रस्ती ।) सेयं दुग्धवटी नाम्ना गोपनीया प्रयवतः॥ (३२११) दीप्तामररसः (र. र. स. । उ. ख. अ. १८) शुद्ध मीठा तेलिया (बछनाग ), शुद्ध धतूरे के बीज, और शुद्ध शंगरफ (हिंगुल ) समान शुद्धं मूतं समं गन्धं मूतांशं मृतताम्रकम् । | भाग लेकर तीनोंको १ पहर तक धतरेके पत्तेकि शाकक्षोत्यपश्चाजद्रवैर्मधे दिनत्रयम् ॥ । रसमें घोटकर मूंगके बराबर गोलियां बनावें । दिनं साक्षिजैवै रुध्वा गजपुटे पचेत् । पञ्चधा भूधरे चाथ चूणे जेपालतुल्यकम् ॥ । इन्हें दूधके साथ सेवन करानेसे अनेक प्रकाद्विगुञ्ज भक्षयेच्चाज्यैः पित्तगुल्मप्रशान्तये । रफा शोथ, पाण्डु और कामला रोग नष्ट होता है। रसो दीप्तामरो नाम पित्तगुल्मं नियच्छति ॥ पथ्य-दूध भात अथवा दूधसे बना हुवा द्राक्षाहरीतकीकाथमनुपानं प्रकल्पयेत् ।। अन्य आहार यथा दलिया आदि । परहेज-लवण ____ शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक तथा ताम्र भस्म, और जल विल्कुल छोड़ देना चाहिये । प्यासमें समान भाग लेकर तीनोंकी कज्जली करके उसे | भी दूध ही देना चाहिये । सागोन वृक्षके पञ्चाङ्ग के रस या काथमें ३ दिन । (३२१३) दुग्धवटी (२) और साक्षीके रसमें १ दिन घोटकर सम्पुटमें (भै. र.; धन्व. । शोथ. ) बन्द कर गजपुटमें फूंक दें फिर इन्हीं दोनों चीजों अमृतं सूर्यगुञ्ज स्यादहिफेनं तथैव च । के रसमें घोट-घोटकर ५ बार भूधर यन्त्रमें पकावें। पञ्चरक्तिकं लौहं च षष्टिरक्तिकमभ्रकम् ॥ तत्पश्चात् उसमें समान भाग शुद्ध जमालगोटेका दुग्धर्गुञ्जाद्वयमिता वटी कार्या भिषग्विदा। चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटकर रक्खें । दुग्धानुपानं दुग्धैश्च भोजनं सर्वथा हितम् ।। ५० For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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