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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[दकारादि
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नीबूके रसमें ३ दिन, कांटे वाली चौलाई के रसमें इसे २ रत्तीकी मात्रानुसार धीमें मिलाकर ३ दिन, घी कुमारके रसमें ३ दिन, बकरीके | खानेसे पित्तगुल्म नष्ट होता है । मूत्रमें २ दिन और गोमूत्रमें ३ दिन पर्यन्त अनुपान-दाख ( मुनक्का) और हर्रका निरन्तर घोट कर उसमें १-१ भाग सेंधा नमक | काथ। चीता, और सश्चल (काला ) नमकका चूर्ण मिला | (३२१२) दुग्धवटी (१) कर पुनः उपरोक्त ओषधियोंके रसोंमें उतने ही . ( मै. र. । शोथ. ) उतने दिन घोटें।
अमृतं धूर्त्तवीजश्च हिङ्गलश्च समं समम्। इसमेंसे ९ रत्ती रस खांड और घीके साथ
धूर्तपत्ररसेनव मईयेद्याममात्रकम् ॥ खिलानेसे समस्त प्रकारके ज्वर नष्ट हो जाते हैं।
मुद्गोपमा वटीं कृत्वा दुग्धेन सह पाययेत् । पथ्य-गेहूं, चावल, उड़दकी दाल, बथुवे
दुग्धेन भोजयेदमं वर्जयेल्लवणं जलम् ॥ का शाक तथा आमला।
शोथं नाना विधं हन्ति पाण्डुरोगं सकामलम् । ( व्यवहारिक मात्रा-४ रस्ती ।)
सेयं दुग्धवटी नाम्ना गोपनीया प्रयवतः॥ (३२११) दीप्तामररसः (र. र. स. । उ. ख. अ. १८)
शुद्ध मीठा तेलिया (बछनाग ), शुद्ध धतूरे
के बीज, और शुद्ध शंगरफ (हिंगुल ) समान शुद्धं मूतं समं गन्धं मूतांशं मृतताम्रकम् ।
| भाग लेकर तीनोंको १ पहर तक धतरेके पत्तेकि शाकक्षोत्यपश्चाजद्रवैर्मधे दिनत्रयम् ॥
। रसमें घोटकर मूंगके बराबर गोलियां बनावें । दिनं साक्षिजैवै रुध्वा गजपुटे पचेत् । पञ्चधा भूधरे चाथ चूणे जेपालतुल्यकम् ॥
। इन्हें दूधके साथ सेवन करानेसे अनेक प्रकाद्विगुञ्ज भक्षयेच्चाज्यैः पित्तगुल्मप्रशान्तये ।
रफा शोथ, पाण्डु और कामला रोग नष्ट होता है। रसो दीप्तामरो नाम पित्तगुल्मं नियच्छति ॥
पथ्य-दूध भात अथवा दूधसे बना हुवा द्राक्षाहरीतकीकाथमनुपानं प्रकल्पयेत् ।।
अन्य आहार यथा दलिया आदि । परहेज-लवण ____ शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक तथा ताम्र भस्म,
और जल विल्कुल छोड़ देना चाहिये । प्यासमें समान भाग लेकर तीनोंकी कज्जली करके उसे | भी दूध ही देना चाहिये । सागोन वृक्षके पञ्चाङ्ग के रस या काथमें ३ दिन । (३२१३) दुग्धवटी (२)
और साक्षीके रसमें १ दिन घोटकर सम्पुटमें (भै. र.; धन्व. । शोथ. ) बन्द कर गजपुटमें फूंक दें फिर इन्हीं दोनों चीजों अमृतं सूर्यगुञ्ज स्यादहिफेनं तथैव च । के रसमें घोट-घोटकर ५ बार भूधर यन्त्रमें पकावें। पञ्चरक्तिकं लौहं च षष्टिरक्तिकमभ्रकम् ॥ तत्पश्चात् उसमें समान भाग शुद्ध जमालगोटेका दुग्धर्गुञ्जाद्वयमिता वटी कार्या भिषग्विदा। चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटकर रक्खें । दुग्धानुपानं दुग्धैश्च भोजनं सर्वथा हितम् ।।
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