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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रसमकरणम् ] २ गोली, तीसरे दिन ३ गोली और चौथे दिन ४ गोली सेवन करनी चाहियें तथा इसके बाद ४० दिन तक रोज ४-४ गोली और फिर ४० दिन तक रोज़ एक एक गोली घटाकर सेवन करनी चाहिये। इसी प्रकार १२ वर्ष तक सेवन करने से मनुष्य जराव्याधि-रहित, भीमके समान बलवान्, सुन्दर, पुत्रादि सन्तति युक्त; शीत, ताप तथा कष्टके सहन करने में समर्थ, और दृढेन्द्रिय हो जाता है । उसे प्रौढा स्त्रियोंके साथ यथेच्छ समागम करनेकी शक्ति और ३०० वर्ष की आयु प्राप्त होती है । तृतीयो भागः । यह रसायन श्वास, खांसी, क्षय, पाण्डु, महान्याधि, इत्यादि भयङ्कर रोगोंको १ मण्डलमें ही नष्ट कर देता है, फिर ज्वरादिकी तो बात है । (३२०९) दिव्यामृतरस: (२) | यदि इसे रसायनकी विधिसे सेवन किया जाय तो पथ्यमें गोदुग्धादि गोरस युक्त पदार्थ देने चाहियें, और यदि किसी रोगको नष्ट करनेके लिए सेवन किया जाय तो उस रोगके विचारसे यथोचित पथ्य देना चाहिये । [११३] सबको एकत्र मिलावें । इसे घी और शहदके साथ सेवन करनेसे मनुष्य जरामरण रहित और सत्पुत्रोत्पादनमें समर्थ होता है । प्राचीन कालमें श्रीशिवजीने कालयव के पिताको यही प्रयोग बतलाया था कि जिसके प्रभाव से उसका जन्म हुवा था । मात्रा - ४ माशे । ( व्यवहारिक मात्रा १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माशा (३२१०) दीपिकारस: (र. रा. सु. । ज्वर; र. र. स. । उ. खं. अ. १२) सन्तप्तसीसभागश्च पारदं गन्धकं कणाम् । समभागं पृथक् तत्र मेलयेच्च यथाविधि ॥ जम्बीरस्य रसे सर्व मर्दच दिनत्रयम् । मेघनादकुमार्योश्च रसे चापि दिनत्रयम् ।। दिनद्वयमजामूत्रे गवां मूत्रे दिनत्रयम् । भावयेच्च यथायेोग्यं तस्मिन्नेतानि दापयेत् ॥ सैन्धवं चित्रकं भागं सौवर्चलवणं तथा । तेन सम्मेलनं कृत्वा भावयेच्च पुनः क्रमात् ॥ अनेन विधिना सम्यक् सिद्धो भवति स रसः। शर्कराघृतसंयुक्तं दद्याद्वलत्रयं रसम् ॥ गोधूमचौदनं पथ्यं मापसूपं सवास्तुकम् । धात्रीफलसमायुक्तं सर्वज्वरविनाशनम् ॥ दीपिकारस इत्येषः तंत्रज्ञैः परिकीर्त्तितः ( र. र. स. । उ. ख. अ. २६ ) एतत्स्यादपुनर्भवं हि भसितं कान्तस्य दिव्या - मृतम् । सम्यक्सिद्धरसायनं त्रिकटुकीचेल्लाज्यमध्वन्वितम् हन्यान्निष्कमितं जरामरणजव्याधींश्च सत्पुत्रदम् । प्रोक्तं श्रीगिरीशेन कालयवनोद्भूत्यै पुरा तत्पितुः ।। कान्त लोहकी निरुत्थ भस्म, सोंठ, मिर्च, १ भाग सीसेको पिघलाकर उसमें १ भाग शुद्ध पारदको डालकर घोटें जब दोनों एक जीव हो जायं तो उसमें १ भाग शुद्ध गन्धक और १ भाग पीपलका चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटें । पीपल, और बायबिडंगका समान भाग चूर्ण लेकर | जब कज्जली तैयार हो जाय तो उसे जम्बीरी For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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