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[११२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[दकारादि स्थास्पषो ज्वालयेद्वहिं यामपर्यन्तमुद्धतम् । । संसारमुखमिच्छद्भिः सुखं जीवितुमिच्छुभिः । ततः सिपेपिधान्यां हि व्योम्नस्त्वष्टगुणं पयः ॥ नित्यं रसो निषेव्योऽयं दिव्यामृतसमो गुणैः ।। जीणे पयसि पिष्ट्वा तत्तालमूलीरसैः पुनः।। धान्याभ्रकको मूसलीके रसमें घोटकर कपड़ इत्यं हि साधयेद् व्योम त्रिवारमतियत्नतः ॥ मिट्टी की हुई हांडीमें भरदें और उसके मुख पर अजादुग्धैः पुटेत्पश्चाद्वाराणि खलु विंशतिम् । एक ऐसा शराव कि जिसके बीचमें छिद्रहो ढककर कम्पिल्लकरसेनापि विष्णुकान्तारसेन च ॥ सन्धिको अच्छी तरह बन्द करदें और उसे सुखाकर कदलीकन्दतोयेन तालमूलीरसेन च । चूल्हे पर चढ़ाकर उसके नीचे १ पहर तक तीब्राग्नि शतवारं पुटेदेवं भवेद्वयोमरसायनम् ॥ जलावें । इसके पश्चात् ऊपर वाले शराव के छिद्र तद्वयोमभसितं ताप्यभस्म तारस्य भस्म च । से हाण्डीमें अभ्रकसे आठ गुना दूध डालदें । जब शुल्वभस्म च तत्सर्वं समांशं परिकल्पयेत् ।। समस्त दूध जल जाय और हाण्डी स्वांगशीतल हो भावयेत्सप्तधा निम्बरसैलौंध्ररसेन च । जाय तो इसमें से अभ्रक को निकालकर पुनः त्रिफलायाः कदल्याश्च कतक्या माकेवस्य च॥ मूसलीके रसमें घोटें और उपरोक्त विधिसे दूध केतकस्यापि सारेण तावद्वाराणि यत्नतः।
डालकर पकावें । इसी प्रकार ३ बार पाक करनेके इति निष्पनकल्केऽस्मिस्तत्समां त्रिफलां क्षिपेत्।।
पश्चात् बकरीके दूधमें घोटकर टिकिया बनाकर भस्मसूतं सिता व्योष चित्रकं च पृथक् पृथक् ।
सुखा लें और शराव-सम्पुटमें बन्द करके गज पुटकी मधुना गुटिकाः कार्याः शाणेन प्रमिताः खल ॥
अग्निमें फूंकदें। इसी प्रकार बकरी के दूधकी २० पुट दें महाकल्क इति ख्यातो दस्राभ्यां परिकीर्तितः ।
और २०-२० पुट कबीला, विष्णुकान्ता, केलेकी एकां गोली समारभ्य तथैकैकां विवर्धयेत् ॥
जड़ और मूसली के रसको दें। इस प्रकार १०० चतुर्गोलकपर्यन्तं मण्डले मण्डले खलु ।
पुट देनेसे अभ्रक रसायन तैयार हो जाता है। सेवितो द्वादशाब्दन्तु जरामृत्युविवर्जितः॥ __अब यह अभ्रक भस्म, स्वर्ण मक्षिक भस्म, सर्वव्याधिविनिर्मुक्तो दृढदीपनपाचनः ।
चांदी भस्म, और ताम्र भस्म बराबर बराबर लेकर भीमतुल्यबलः श्रीमान्पुत्रसंततिसंयुतः ॥
सबको नीम, लोध, त्रिफला, केलेकी जड़, केतकी, सर्वारोग्यमयो भीमसमानभुजविक्रमः ।
भंगरा और कमलनालके रसकी सात सात भावना सर्वायाससहिष्णुश्च शीतातपसहस्तथा ।
दें और फिर उसमें हर्र, बहेड़ा, आमला, पारदअमन्दसमदोपेतः पौढस्त्रीरतिरञ्जनः। दृढसर्वेन्द्रियो भूत्वा जीवेद्वर्षशतत्रयम् ।।
भस्म (अभावमें रससिन्दूर), खांड, सोंठ, मिर्च, श्वासं कासं क्षयं पाण्डं तथैवाष्टौ महागदान् ।
पीपल, और चीते में से हरेकका चूर्ण उस तैयार मण्डलार्धेन शमयेज्ज्वरादीनां तु का कथा॥ औषधके बराबर मिलाकर शहदमें घोट कर ४-४ सर्वगोरससंयुक्त पथ्य कार्य रसायने । माशेकी गोलियां बना लें। रोगोचितमयान्यच्च ददीत खलु रोगिणे ॥ । इनमेसे पहिले दिन १ गोली, दूसरे दिन
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