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रसप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१११]
द्रुतस्तं पुनस्तुल्यं दत्त्वा मधु पुटेत्तथा। उसमें से औषधको निकालकर उसमें उसके बराबर इत्येवं सप्तवारांस्तु द्रुतं मूतं समं समम् ॥
द्रुत पारद मिलाकर उपरोक्त विधिसे घोटकर उसी
प्रकार २४ घण्टे भूधर यन्त्रमें पकावें । इसी प्रकार दत्वा मधु पुटे पच्याजायते भस्मसूतकः ।
७ बार पाक करें । हर बार समान भाग पारद भस्मस्तसमं गन्धं दत्त्वा रुद्धवा धमेदृढम् ॥
मिलाते रहना चाहिये । इस कियासे पारद भस्म जायते गुटिका दिव्या विख्याता दिव्यखेचरी। तैयार हो जायगी । इस भस्ममें समान भाग शुद्ध वर्षकं धारयेद्वक्त्रे जीवेत्कल्पसहस्रकम् ॥ गन्धक मिलाकर घोटकर अन्धमूषामें बन्द करके तस्य मूत्रपुरीषाभ्यां सर्वलोहस्य लेपनात् । १ दिन अग्निमें धमानेसे उसकी गुटिका तैयार हो जायते कनकं दिव्यं समावर्ते न संशयः॥
जायगी। पलद्वयं भृङ्गराजद्रवं चानुपिबेत्सदा ।
इस " खेचरी गुटिका" को एक वर्ष तक पूर्वोक्तं भस्मसूतं वा गुञ्जामात्रं सदा लिहेत् ॥
मुखमें धारण किये रहनेसे अत्यन्त दीर्घायु प्राप्त वर्षकं मधुनाऽऽज्येन लक्षायुर्जायते नरः।
होती है । इसके अभ्यासीके मल मूत्र का लोह, वलीपलितनिर्मुक्तो महाबलपराक्रमः॥ ताम्रादि किसी भी लोह पर लेप करके अग्निमें
शुद्ध स्वर्ण, कृष्णाभ्रक सत्व, शुद्ध चांदी, और तपानेसे उसका दिव्य स्वर्ण बन जाता है । शुद्ध ताम्रका चूर्ण समान भाग लेकर सबको एक | __ यदि गुटिका न बनाकर उपरोक्त भस्म ही १ ऐसी अन्ध मूषामें बन्द करें कि जिसके भीतर | रत्तीकी मात्रानुसार घी और शहदमें मिलाकर १ वर्ष नाग और बंगका लेप किया हुवा हो और उसे १ तक निरन्तर २ पल भंगरेके रसके साथ सेवन की दिन तक अग्निमें धमाचें। इससे उपरोक्त औषधोंका जाय तो शरीर बलिपलित रहित और महापराक्रम खोट बन जायगा । अब ४ भाग यह खोट, १ । तथा बलयुक्त होकर १ लाख वर्षकी आयु प्राप्त भाग हीरा भस्म, तथा १-१ भाग शुद्ध स्वर्ण होती है। माक्षिक, शुद्ध तीक्ष्णलोह और शुद्ध कान्त लोहका
दिव्यदृष्टिकरो रसः चूर्ण एकत्र मिलाकर सबको नाग और बंगसे लिप्त मृषामें बन्द करके १ दिन तक धमावें और फिर
(र. सं. क. । उल्ला. ४ ) उसके स्वांग शीतल होने पर उसमेंसे औषधको
____ अञ्जनप्रकरणमें देखिये । निकालकर अत्यन्त बारीक पीसकर उसमें उसके । (३२०८) दिव्यामृत रस:(१)(महाकल्क:) बराबर द्रुत पारद मिलाकर सबको ३ दिन तक तप्त (र. र. स.। उ. ख. अ. २७) खल्वमें दिव्यौषधियों के रसके साथ खरल करें और धान्याभ्रक विनिक्षिप्य मुशलीरसमर्दितम् । मूषामें बन्द करके २४ घण्टे तक भूधरयन्त्रमें स्थाल्यां लिप्त्वा निरुध्याऽथ पिधान्या मध्यपकावें । जब यन्त्र स्वांग शीतल हो जाय तो।
रन्ध्रया ॥
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