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[१०४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[दकारादि (३) देवदालीका चूर्ण, बाबची, चीता, साक्षी मिश्रित चूर्ण ५ तोलेकी मात्रानुसार हरके
और भंगरा । सबका समान भाग चूर्ण ले- पानीके साथ सेवन करें। कर एकत्र मिला, इसमें से नित्य प्रति १।। (६) देवदाली और संभालके समान भाग मिश्रित
तोला चूर्ण हर्र के काथके साथ सेवन करें। चूर्णको हरे के काथके साथ ११ तोलेकी (३) देवदाली और पुनर्नवा के समान भाग मात्रानुसार सेवन करें।
चूर्णको एकत्र मिलाकर पानीके साथ सेवन उपरोक्त प्रयोगों में से किसीको भी एक वर्ष करें।
तक सेवन करने से वृद्धावस्था नहीं आती और (५) देवदाली और साक्षीका समान भाग दीर्घायु प्राप्त होती है।
इति दकारादिकल्पप्रकरणम् ।
अथ दकारादिरसप्रकरणम्
दद्रकुष्ठविद्रावणरसः बायबिडंग, इलायची, नागकेसर, नागरमोथा, कचूर, (र. र. स. । उ. ख. अ. २०) काकड़ासिंगी, बिड नमक, अभ्रकभस्म, शङ्क
नागार्जुन वटी ( रस) देखिये । भस्म, लोहभस्म और सोनामक्खी भस्म । सबका (३१९१) दन्तोद्भेदगदान्तकरसः अत्यन्त महीन चूर्ण समान भाग लेकर सबको
(भै. र.; र. चं. । बाल.) दूधमें घोटकर ३-३ रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। पिप्पलीपिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः। ___इन्हें ( पानी या दूधमें घिसकर ) बालक के अजमोदायमानीभ्यां निशया मधुकेन च ॥
। मसूढ़ों पर मलनेसे दांत निकलनेके समय होने दादा:विडङ्गैलानागकेशरनीरदैः।
वाले रोग, ज्वर, आक्षेपक और अतिसारादि नष्ट शटीशृङ्गीविडैोम्ना शङ्खऽयोहेममासिकैः ॥
होते तथा दांत शीघ्र निकल आते हैं। विधाय पयसा पिष्टैटिका बल्लसम्मिता। (३१९२) दरदगुटिका दन्तघर्षेऽभ्यवहृतौ योजयेञ्च प्रयोगवित ॥
(धन्च. । व्रण.) प्रयोगादस्य दन्तानां त्वरयोगमनं भवेत् ।
दरदः पार्वतीपुष्पं कुनटी पुरुषो रसः। ज्वराक्षेपातिसाराद्या निवर्त्तन्ते न संशयः ॥
शोणितं गन्धको दैत्यः सैन्धवातिविषा चवी ॥ ___ पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सोंठ, अज- शरपुडा विडङ्गश्च यवानी गजपिप्पली। में, अजवायन, हल्दी, मुलैठी, देवदारु, दारुहल्दी, मरिचार्क च वरुणा धनकं च हरीतकी॥
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