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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - रसपकरणम् ] तृतीयो भागः। १०५] मर्दितं कटुतैलेन गुटिका कारयेदिह। ।१॥ भाग, और सुहागे की खील आधा भाग लेकर नाडीव्रणप्रवाहश्च गण्डमालां विचर्चिकाम् ॥ | सबको पीसकर पिट्टी बनावें और फिर उसे जायचिरव्रणं दद्रुकुष्ठं पूतिकं तु शिरोगदम् ।। फलके भीतर भरकर उसके ऊपर गेहूंके पादस्फोट तथा हस्तं विचर्चीबहुकीटकम् ॥ | आटेका अच्छा मोटा लेप करदें और उसे ___शुद्ध हिंगुल (शंगरफ), धायके फूल, मन- उपलों ( कण्डों ) की निर्धूम अग्नि में दबा दें। सिल, गूगल, शुद्ध पारा, केसर, शुद्ध गन्धक, लोह- जब आटेका रंग अच्छी तरह लाल हो जाय तो भस्म, सेंधानमक, अतीस, चव, सरफोंका, बाय- | जायफलको निकालकर पीस कर मूंगके बराबर बिडंग, अजवायन, गजपीपल, काली मिर्च, आक- गोलियां बनावें । की जड़, बरनेकी छाल, राल और हरै । सब चीजें इन्हें गायके दूधसे खिलानेसे ज्वरातिसार, समान भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धककी | अग्निमांद्य, निद्रानाश और अरुचि का नाश होता कजली बनावें और फिर उसमें अन्य चीजोंका तथा बल पुष्टिकी वृद्धि होती है। अत्यन्त महीन चूर्ण मिलाकर सरसोंके तैलमें घोटकर गोलियां बना लें। ( मात्रा-२-३ गोली) __ यह गोलियां नाडीव्रण ( नासूर ), पावसे | (३१९४) दरदादिवटी रक्त या मवादका निकलना, गण्डमाला, विचर्चिका, (सि. भे. म. मा. । कास.) पुराना घाव, दाद, कुष्ठ, शिरोव्याधि, हाथ पैरोंका | दरदं शृङ्गिक मुस्ता पिप्पली मरिचं सुंमम् । फटना आदि रोगोंको नष्ट करती हैं। यदि घावमें | निम्बुनीरैस्त्र्यहं पिष्ट्वा मुद्गामाः कारयेटीः॥ कृमि पड़ गए हों तो वह भी इनके सेवनसे नष्ट | द्विसन्ध्यं द्वे गिलेद्गुटयौ कासवेगनिवृत्तये । हो जाते हैं। कत्रयं वद्वयं तैलं खण्डश्चापि विवर्जयेत् ॥ (मात्रा १ माशा) शुद्ध हिंगुल ( शिंगरफ), शुद्ध मीठा तेलिया (३१९३)दरदादिपुटपाकः (वटी) (वछनाग), नागरमोथा, पीपल, काली मिर्च और (वृ. नि. र. । ज्वरातिसार) लैांगका चूर्ण समान भाग लेकर सबको ३ दिन दरदश्चैकभागो हि सार्धभागोऽहिफेनकः ।। तक नीबूके रसमें घोटकर मूंगके बराबर गोलियां अर्धभागो भवेट्टङ्कः पिष्टिकाञ्च प्रपेषयेत् ॥ बनावें। जातीफले च विन्यस्य सर्वे च पुटपाचितम् । मुगमात्र मिलेनित्यं पयसा च गवां हितत् ॥ | इनमें से २-२ गोली प्रातः सायं खानेसे ज्वरातिसारे मान्दो च निदानाओमजी खांसी का वेग शान्त हो जाता है। योजयेद्भेषजं नित्यं बलपुष्टिकरं परम् ॥ करेला, कुष्माण्ड, केला और सेम (दो प्रकारका) शुद्धहिंगुल ( शिंगरफ़ ) १ भाग, अफीम | तथा तैल और खांड से परहेज़ करें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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