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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [१०३] - - एवं द्विसप्तकाचं श्वित्रे स्फोटा भवन्ति च ॥ इस प्रकार २ सप्ताह तक औषध सेवन करश्वेतारुणास्तदा ते च विलीयन्ते दिनत्रयात् । नेसे श्वेतकुष्ठके स्थान पर छाले पड़ जायंगे, तन्मध्यात्सकला दोषाः निपतन्ति शरीरतः ॥ | जिनका रंग सफेद या लाल होगा। यह छाले ३ पश्चात्त्वचासमं भावमल्पकालेन चाप्नुयात् । दिन बाद फूट जायंगे और उनसे मवाद निकल माषानं भुज्यते नित्यं कुलत्थान विशेषतः॥ कर शरीर शुद्ध हो जायगा । इसके थोड़े दिन तिलतैलेन तच्छाकं वटकानि च भक्षयेत् । बाद ही त्वचाका रंग ठीक हो जाता है। मापानमेव कर्त्तव्यं प्रत्यहं गुरुपूजनम् ॥ इस प्रयोगसे सात सप्ताह में श्वेतकुष्ठ अव श्य ही नष्ट हो जाता है। रीत्याऽनया सदा स्थेयं यथा शुद्धो भवेन्नरः। पथ्य-उड़द, कुलत्थ और तिलके तैल में श्वित्रनाशो भवेचून सप्तसप्तकवासरैः॥ | बना हुवा कुलथीका शाक तथा बटक । नात्र कोऽपि हि संदेहो विपश्चिद्भिर्विधीयते । | (३१९०) देवदालीकल्पः (२) अवश्यं वाप्यवश्यं वा योगः श्वित्रहरोत्ययम् ॥ (र. र. रसा. । उपदेश. ४) देवदालीके सर्व व्याधि नाशक जिस कल्पको छायाशुष्कं देवदालीपश्चाङ्गं चूर्णयेत्ततः । मैंने सुना, देखा और स्वयं आजमाया है उसका मध्वाज्याभ्यां लिहेत्कर्ष वर्षान्मृत्युजरां जयेत् ।। वर्णन करता हूं। जीवेत्कल्पसहस्रन्तु रुद्रतुल्यो भवेन्नरः। __ अमृता, देवदाली, देवी, देवनिमिता, स्वगतचूर्ण कर्षमात्रन्तु नित्यं पेयं शिवाम्बुना ॥ वल्ली, महासोमा, श्वेतपुष्पा, अमरी, रसायनी, देव- पूर्ववज्जायते सिद्धिर्वत्सरानात्र संशयः । माता, अनिमिषा, मृतजीविनी, गन्धारी, सर्वपूज्या, I - तचूर्ण बाकुचीवहिसाक्षीभृङ्गराटसमम् ॥ m m mm विधात्री और कायबन्धनी, यह सब देवदाली के चूणितं कर्षमात्रन्तु नित्यं पेयं शिवाम्बुना । नाम हैं। वर्षान्मृत्युं जरां हन्ति छिद्रां पश्यति मेदिनीम्।। देवदाली कहीं कहीं सफेद फूलकी और ! पुनर्नवादेवदाल्योनीरैर्नित्यं पिबेन्नरः। कहीं कहीं पीले फूलकी पाई जाती है। देवदाल्पाश्च साक्ष्याः पलैकं वा शिवाम्बुना॥ __ उसके उत्तम फलाका पासकर (१-१ पिबेत्स्यात्पूर्ववत्सिद्धिर्वत्सरानात्र संशयः । माशेकी ) गोलियां बनाकर तेज़ धूपमें सुखा लें। देवदाली च निर्गुण्डी पिबेत्कर्षा शिवाम्बुना ॥ इनमें से १ गोली प्रतिदिन गुड़में लपेटकर रोगी | वकेन जरां हन्ति जीवेदाचन्द्रतारकम् ॥ को खिलावें और उसके शरीर पर तेलकी मालिश (१) देवदालीके पञ्चाङ्गको छायामें सुखा कर कराके १ या २ पहर तक तेज़ धूप में बिठाएं, चूर्ण करलें । इसमें से नित्य प्रति ११ तोला यहां तक कि उसका शरीर तपने लगे । इसके चूर्ण शहद और धीमें मिलाकर सेवन करें। थोड़ी देर बाद उसे खूब अच्छी तरहसे वमन (२) देवदालीके उपरोक्त चूर्णको हरेके काथके विरेचन होंगे। साथ सेवन करें। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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