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कल्पप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१०३]
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एवं द्विसप्तकाचं श्वित्रे स्फोटा भवन्ति च ॥ इस प्रकार २ सप्ताह तक औषध सेवन करश्वेतारुणास्तदा ते च विलीयन्ते दिनत्रयात् । नेसे श्वेतकुष्ठके स्थान पर छाले पड़ जायंगे, तन्मध्यात्सकला दोषाः निपतन्ति शरीरतः ॥ | जिनका रंग सफेद या लाल होगा। यह छाले ३ पश्चात्त्वचासमं भावमल्पकालेन चाप्नुयात् । दिन बाद फूट जायंगे और उनसे मवाद निकल माषानं भुज्यते नित्यं कुलत्थान विशेषतः॥ कर शरीर शुद्ध हो जायगा । इसके थोड़े दिन तिलतैलेन तच्छाकं वटकानि च भक्षयेत् ।
बाद ही त्वचाका रंग ठीक हो जाता है। मापानमेव कर्त्तव्यं प्रत्यहं गुरुपूजनम् ॥
इस प्रयोगसे सात सप्ताह में श्वेतकुष्ठ अव
श्य ही नष्ट हो जाता है। रीत्याऽनया सदा स्थेयं यथा शुद्धो भवेन्नरः।
पथ्य-उड़द, कुलत्थ और तिलके तैल में श्वित्रनाशो भवेचून सप्तसप्तकवासरैः॥
| बना हुवा कुलथीका शाक तथा बटक । नात्र कोऽपि हि संदेहो विपश्चिद्भिर्विधीयते ।
| (३१९०) देवदालीकल्पः (२) अवश्यं वाप्यवश्यं वा योगः श्वित्रहरोत्ययम् ॥
(र. र. रसा. । उपदेश. ४) देवदालीके सर्व व्याधि नाशक जिस कल्पको
छायाशुष्कं देवदालीपश्चाङ्गं चूर्णयेत्ततः । मैंने सुना, देखा और स्वयं आजमाया है उसका
मध्वाज्याभ्यां लिहेत्कर्ष वर्षान्मृत्युजरां जयेत् ।। वर्णन करता हूं।
जीवेत्कल्पसहस्रन्तु रुद्रतुल्यो भवेन्नरः। __ अमृता, देवदाली, देवी, देवनिमिता, स्वगतचूर्ण कर्षमात्रन्तु नित्यं पेयं शिवाम्बुना ॥ वल्ली, महासोमा, श्वेतपुष्पा, अमरी, रसायनी, देव- पूर्ववज्जायते सिद्धिर्वत्सरानात्र संशयः । माता, अनिमिषा, मृतजीविनी, गन्धारी, सर्वपूज्या,
I - तचूर्ण बाकुचीवहिसाक्षीभृङ्गराटसमम् ॥ m
m mm विधात्री और कायबन्धनी, यह सब देवदाली के
चूणितं कर्षमात्रन्तु नित्यं पेयं शिवाम्बुना । नाम हैं।
वर्षान्मृत्युं जरां हन्ति छिद्रां पश्यति मेदिनीम्।। देवदाली कहीं कहीं सफेद फूलकी और !
पुनर्नवादेवदाल्योनीरैर्नित्यं पिबेन्नरः। कहीं कहीं पीले फूलकी पाई जाती है।
देवदाल्पाश्च साक्ष्याः पलैकं वा शिवाम्बुना॥ __ उसके उत्तम फलाका पासकर (१-१ पिबेत्स्यात्पूर्ववत्सिद्धिर्वत्सरानात्र संशयः । माशेकी ) गोलियां बनाकर तेज़ धूपमें सुखा लें।
देवदाली च निर्गुण्डी पिबेत्कर्षा शिवाम्बुना ॥ इनमें से १ गोली प्रतिदिन गुड़में लपेटकर रोगी |
वकेन जरां हन्ति जीवेदाचन्द्रतारकम् ॥ को खिलावें और उसके शरीर पर तेलकी मालिश
(१) देवदालीके पञ्चाङ्गको छायामें सुखा कर कराके १ या २ पहर तक तेज़ धूप में बिठाएं,
चूर्ण करलें । इसमें से नित्य प्रति ११ तोला यहां तक कि उसका शरीर तपने लगे । इसके
चूर्ण शहद और धीमें मिलाकर सेवन करें। थोड़ी देर बाद उसे खूब अच्छी तरहसे वमन (२) देवदालीके उपरोक्त चूर्णको हरेके काथके विरेचन होंगे।
साथ सेवन करें।
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