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नस्यप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[ १०१
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अथ दकारादिनस्यप्रकरणम्
(३१८०) दन्त्यादिनस्यम् | (३१८३) दाडिमादिनस्यम् (१) (च. सं. । चि. अ. ५ कुष्ठ. )
__(वं. से. । शिरो.) दन्तीमधूकसैन्धवफणिज्झकाः
संक्षुन्नाः शर्करा शा दाडिमीकलिकाः शुभाः। पिप्पली करञ्जफलम् ।। | नश्यन्ति योजिताः सधः शिरःशूलहराः पराः ॥ नस्यं स्यात् सविड
___ अनारकी कली २ भाग और खांड एक कृमिकुष्ठकफमदोषघ्रम् ॥
भाग लेकर दोनोंको पीसकर रक्खें ।। दन्तीमूल, मुलैठी, सेंधानमक, तुलसी (मरु
इसकी नस्य लेनेसे शिरशूल शीघ्र ही नष्ट वा), पीपल, बायबिडंग और करा फलका समान | भाग चूर्ण लेकर एकत्र मिलावें।
हो जाता है। ___इसकी नस्य लेनेसे कृमि, कुष्ठ और कफ- | (३१८४) दाडिमादिनस्यम् (२) विकार नष्ट होते हैं।
(वं. से.; यो. र. । रक्तपित्ता.) (३१८१) दशमूल्यादिनस्यम्
रसो दाडिमपुष्पोत्थो रसोभिवोऽथवा। (वृ, नि. र.; वं. से. । शिरो.)
आम्रास्थिजपलाण्डोर्वा नासिकास्तरक्तजित् ॥ दशमूलीकषायन्तु सर्पिःसैन्धवसंयुतम् ।। __अनारके फूलोंका रस या दूब घास अथवा नस्यमर्धावभेदघ्नं सूर्यावर्तशिरोतिनुव ॥
आमकी गुठली या प्याज (पलाण्डु) का रस दशमूलके काथमें सेंधानमक और घी मिलाकर
| नाकमें डालनेसे नकसीर बन्द हो जाती है । उसकी नस्य लेनेसे आधासीसी, सूर्यावर्त और शिरशूल नष्ट होता है ।
(३१८५) दाडिमादिनस्यम् (३) (३१८२) दाडिमकुसुमरसप्रयोगः
( वं. से.; ग. नि. । रक्त पित्त.) (वै. म. र. । पट. १)
रसो दाडिमपुष्पस्य दूर्वारससमन्वितः । दाडिमकुसुमस्वरसः स्तन्यं वा चूतकुसुमस
सालक्तकरसोपेतः पथ्यारससमन्वितः॥
लिलं वा । | योजितो नासयोः क्षिप्रं त्रिदोषमपि दारुणम् । म्भो वा नस्यानासारतति जयति ॥ नासारक्तं प्रवृत्तन्तु हन्यादिति किमद्भुतम् ॥
अनार ( दाडिम ) के फूलों के रस, स्त्रीके अनारके फूलोंका रस, दूब घासका रस, दूध, आमके फूल ( बौर ) के रस और दूर्वा लाखका रस, और हर्रका रस, समान भाग लेकर घासके रसमेंसे किसी एककी नस्य लेनेसे नाकसे | सबको एकत्र मिला कर उसकी नस्य लेनेसे होनेवाला रक्तस्राव ( नकसीर ) रुक जाता है। त्रिदोषज नकसीर भी तुरन्त बन्द हो जाती है।
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