SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि बकरीके दूधमें घोटकर तांबे के पात्रमें रख दें और देवदारके चूर्णको २१ बार बकरीके मूत्रमें सात दिन पश्चात् बत्तियां बना लें। घोटकर बारीक सुरमा बनावें। इसे आंखमें इन्हें आंखों में आंजनेसे दृष्टि स्थिर होती है । । आंजनेसे पटल, और रात्र्यन्धता ( रतौंधा ) अवश्य (३१७६) देवदारुरसक्रिया जाता रहता है। ( वै. म. र. । पट. ६) (३१७८) बादशामृतावनम् दाविल्कलसैन्धवाञ्जनकणा (रसे. मं. । अ. ३ सर्व नेत्ररोगे ) तुत्याब्धिफेनोषणैः। व्योष त्रीण्यञ्जनान्येव शुल्वं कुनटि सैन्धवम् । यष्टीताम्रसमन्वितैः सुमसणं विमला शीतलं सूतमजाक्षीरेण पेषयेत् ॥ ___क्षौद्रेण पिष्टैः कृता । सर्वनेत्रामयहरं द्वादशाख्यामृताञ्जनम् ।। एषा हन्ति रसक्रिया नय सोंठ, मिर्च, पीपल, काला सुरमा, रसौत, नयोः पिल्लादिवमियान् । स्रोतोऽअन, ताम्रभस्म, मनसिल, सेंधा, विमला शोदसावनिशान्ध्यशुक्लतिमिरा भस्म, कपूर और पारा समान भाग लेकर सबको ___ण्यन्यांश्च नेत्रामयान् ॥ एकत्र मिलाकर घोटें जब सब चीजें मिल जाय दारु हल्दीकी छाल, सेंधा, सुरमा, पीपल, तो एक दिन बकरी के दूधमें घोटकर रक्खें। नीलाथोथा, समन्दरझाग, स्याहमिर्च, मुलैठी और यह " द्वादशामृताञ्जन" समस्त नेत्ररोगों ताम्रका चूर्ण; सब चीज़ोंका अत्यन्त महीन चूर्ण | को नष्ट करता है। समान भाग लेकर सबको शहदमें घोट लें। (३१७९) दिनिशादिवत्तिः यह रसक्रिया आंखों के पिल्लादि रोग, (वा. भ. । उ. अ. ९) अश्रुस्राव, रतौंधा, फूला और तिमिरादि रोगों को द्विनिशारोध्रयष्टयाहरोहिणीनिम्बपल्लवैः। नष्ट करती है। कुकूणके हिता वत्तिः पिष्टस्ताम्ररजोन्वितैः ।। (३१७७) देवदार्वञ्जनम् (१) हल्दी, दारु हल्दी, लोध, मुलैठी, हरी, नीमके (धन्वन्तरि । चक्षु.) पत्ते और ताम्रके अत्यन्त महीन चूर्णको पानीके देवदारोश्च वै चूर्ण अजामत्रेण भावयेत । | साथ पीसकर बत्तियां बनावें । एकविंशति वै वारमक्षिणी तेन चाञ्जयेत् ॥ इन्हें आंखों में आंजने से कुकूणक रोग नष्ट रात्र्यन्धता पटलता नश्येदिति विनिश्चयः॥ । होता है । इति दकाराघञ्जनपकरणम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy