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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनमकरणम् ] सृतीयो भागः। [९९] समुद्रफेन । सबका महीन चूर्ण १-१ भाग लेकर ! बायबिडंग, समुद्रफेन, छोटी इलायची, शंखकी नाभि सबको बकरीके दूधमें घोटकर तांबेके पात्रमें लेप और रसौतका समान भाग चूर्ण लेकर सबको एकत्र करदें और सातदिन पश्चात् छुड़ा कर फिर बकरीके मिलाकर खूब घोटें और पानीकी सहायतासे दूधमें घोटकर बत्तियां बना लें। बत्तियां बना लें। __ यदि अन्धे की आंखका तारा नष्ट न हुवा हो इस " दृष्टिप्रदा वर्ति ” को नित्य प्रति तो इसके लगानेसे उसे भी दीखने लगता है। | आंखोंमें आंजनेसे पटल, तिमिर, अजकाजात, फूला, (३१७२) दृष्टिप्रदा पतिः (२) | और अन्य नेत्र रोग नष्ट होते हैं । (ग. नि.; वृ. मा; भै. र. । नेत्ररो.) (३१७४) दृष्टिप्रसादनाजनम् (१) हरीतकी हरिद्रा च पिप्पल्यो मरिचानि च । (सु. सं. । उत्त. अ. १७) कण्डूतिमिरजितिन कचित्मतिहन्यते ।। दृष्टेरतः प्रसादार्थमञ्जने शृणु मे शुभे । हर, हल्दी, पीपल, और काली मिर्चके समान मेषशृङ्गस्य पुष्पाणि शिरीषधवयोरपि ॥ सुमनायाश्च पुष्पाणि मुक्तावैदूर्यमेव च । भाग चूर्णको पानीके साथ घोटकर बत्तियां बनावें । अजाक्षीरेण सम्पिष्य ताने सप्ताहमावपेत् ।। इन्हें आंखों में आंजनेसे आंखोंकी खाज, और प्रविधाय च तद्वतिर्योजयेचाञ्जने भिषक् ॥ तिमिरका नाश होता है। मेढासिंगीके फूल, सिरसके फूल, धवके फूल, (३१७३) दृष्टिप्रदा वतिः (३) चमेलीके फूल, मोती और वैदूर्य मणि का चूर्ण समान (र. का. धे.। अधि. ५६) भाग लेकर सबको बकरीके दूध में घोटकर ताम्रकनकं चन्दनं लाक्षा मधुकं चन्दनोत्पलम् ।। पात्रमें रख और सात दिन बाद उसकी बत्तियां रुद्राक्षामलकीबीजं मधृकश्च मनःशिला ॥ बना लें। विडङ्गोदधिफेनैलां शंतनाभिरसाञ्जनम् ।। ! यह वर्ति नेत्रांको स्वच्छ करती है । पषा दृष्टिपदा वतिर्नाम्ना वैदेहनिर्मिता ॥ (३१७५) दृष्टिप्रसादनाञ्जनम् (२) नित्योपयोगात्पटलं तिमिरं शुक्लिकाऽजिका। (सु. सं. । उ. अ. १७) शुक्रं शुक्राक्षिरोगांश्च विवद्धं चर्म चैव हि ॥ स्रोतोजं विद्रमं फेनं सागरस्य मनःशिला। निहन्ति रोगानेतान्हि त्रिदोषानपि दुस्तरान् ॥ मरिचानि च तद्वर्तीः कारयेच्चापि पूर्ववत् ॥ सोनेके वर्क, लाल चन्दन, लाख, मुलैठी, दृष्टिस्थैर्यार्थमेतत्तु विदध्यादजने हितम् ॥ सफेद चन्दन, नीलकमल, रुद्राक्ष, आमलेकी गुठली सुरमा, मूंगा, समुद्रफेन, मनसिल और को मज्जा (भीतरकी गिरि), महुवेके फूल, मनसिल, ! काली मिर्चका चूर्ण समान भाग लेकर सबको १ लवणानीति पाठान्तरम्. For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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