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लेपप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
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देवदार, बच, कूठ, सोया, हींग और सेंधा | (३१४६) दूर्वादिलेपः (२) नमकको काखीमें पीसकर लेप करनेसे आनाह (ग. नि.; वृं. मा.; यो. र.; वं. से. । व्रणरो.; नष्ट होता है।
शा. सं. । लेपा.) (३१४३) दायांदिलेपः (१)
दुर्वा च नलमूलश्च मधुकं चन्दनं तथा। (यो. र.; वृ. नि. र.; र. र. । उपदंश.) शीतलाश्च गणाः सर्वे प्रलेपः पित्तशोफहा ॥ त्वचो दारुहरिद्रायाः शङ्खनाभी रसाञ्जनम् । ___दूब घास, खस, मुलैठी, लाल चन्दन, और लाक्षागोमयनिर्यासस्तैलं क्षौद्रं घृतं पयः॥ अन्य शीतल गणोंके पदार्थोंका लेप करनेसे घावोंएभिः सुपिष्टैर्द्रव्यांशैरुपदशं प्रलेपयेत् ।।
का पित्तज शोथ नष्ट होता है । ब्रणाश्च तेन शाम्यन्ति श्वयथुर्दाह एव च ॥ । (२१४७) दूवाद
दार हल्दीकी छाल, शंखकी नाभि. रसौत. । (. मा.; वे. से.; ग. नि.। कुष्ठा.; वृ. नि. र.। लाख, गायके गोबरका रस, तैल, शहद, घी
त्वग्दो.; शा. सं. । लेपा.) और दूध । सब चीजें समान भाग लेकर पीसने | द्वाभयासन्धवचक्रमर्द योग्य चीज़ोंको महीन पीसकर सबको एकत्र मिलावें।
कुठेरकाः काञ्जिकतक्रपिष्टाः । इसे उपदंशके घावों पर लगाने से घाव और त्रिभिः प्रलेपैरपि बद्धमूलां उनको सूजन तथा दाह नष्ट हो जाती है। दुद्रं च कण्डं च विनाशयन्ति ॥ (३१४४) दाादिलेपः (२)
__ दूब, हर्र, सेंधा, पंवाड़के बीज और तुलसी (यो. र.; वृ. नि. र. । शिरो.) को काजी या तकमें पीसकर केवल तीन बार ही दावहिरिद्रा मञ्जिष्ठा सनिम्बोशीरपद्यकम । । लेप करनेसे पुराना दाद और खुजली नष्ट हो एतत्पलेपनं कुर्याच्छवस्य प्रशान्तये ॥
| जाती है। दारुहल्दी, मजीठ, नीमकी छाल, खस
| (३१४८) दूर्वारसादिलेपः और पद्माक समान भाग लेकर पानीके साथ पीस
(च. द.; . मा. । नेत्ररो.) कर लेप करने से शङ्खक रोग शान्त होता है।
कल्किताः सघृता दूर्वायवगैरिकशारिवाः।
मुखलेपाः प्रयोक्तव्या रुजा रोगोपशान्तये॥ (३१४५) दूर्वादिलेपः (१) (वृ. मा.; ग. नि । शीतपि.; शा. सं. । लेपा.;:
दूब घास, जौ, गेरु मिट्टी और सारिवाके
महीन चूर्णको घीमें मिलाकर लेप करनेसे नेत्रोंकी र. चं. । शीतपित्ता.; रसें. चिं. । अ. ९) पीडा शान्त होती है। दानिशायुतो लेपः कच्छूपामाविनाशनः। (३१४९) देवदा दिलेपः (१) कृमिदद्रहरश्चैव शीतपित्तहरः स्मृतः ।। (वृ. नि. र.; ग. नि; q. मा. । शिरो.) ___दूब घास और हल्दी का लेप करनेसे कच्छू, देवदारु नतं विश्वं नलदं विश्वभेषजम् । पामा, कृमि, दाद और शीतपित्तका नाश होता है। लेपः काञ्जिकसम्पिष्टस्तैलयुक्तः शिरोतिनुत् ।।
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