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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ९४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [दकारादि - - (३१ देवदारु, तगर, बोल, खस और सोंठ को 1 पुनर्नवा ( बिसखपरा ) देवदार, सोंठ, सफेद काजीके साथ पीसकर तैलमें मिलाकर लेप करनेसे सरसों और सहजनेकी छालको काखीके साथ शिरपीड़ा शान्त होती है। पीसकर लेप करनेसे हर प्रकारकी सूजन नष्ट हो (३१५०) देवदादिलेपः (२) जाती है। (. मा.; वं. से. । गलगण्डा.) । (३१५४) द्राक्षादिलेपः देवदारुविशाले च कफगण्डे प्रलेपनम् । (ग. नि. । मुख.) छईन शीर्षरेकश्च सर्वो रेचनिको हितः॥ द्राक्षा पटोलं मधुकं सनिम्बं कफज गलगण्ड रोगमें देवदारु और इन्द्रा त्रिवृद्धरिद्रा सुमनः प्रवालाः । यणकी जड़का लेप करना तथा वमन विरेचन | ससैन्धवं क्षौद्रयुतं वदन्ति और शिरो विरेचन कराना चाहिये । सुखोष्णकल्कं व्रणशोधनीयम् ॥ (३१५१) देवदादिलेपः (३) दाख, पटोलपत्र, मुलैठी, नीमकी छाल, निसोत, (वा. भ. । चि. अ. १५; च. सं. । चि. अ. हल्दी, चमेलीकी कोंपल, और सेंधा नमक के महीन १८; यो. र.; ग. नि. । उदररो.) चूर्णको शहदमें मिलाकर मन्दोष्ण करके लेप करने देवदारुपलाशार्कहस्तिपिप्पलिशिग्रभिः । (या व्रणपर बांधने) से ब्रण शुद्ध हो जाता है। साश्वगन्धैः सगोमूत्रैः प्रदिह्यादुदरं शनैः ॥ ___उदर व्याधिमें देवदार, ढाककी छाल, (वै. म. र. । प. १८) आककी छाल, गजपीपल, सहजनेकी छाल, और | द्विनिशातिलरुपाजीकल्कोद्वतितविग्रहः। असगन्धको गोमूत्रमें पीसकर पेटपर लेप करना यः स्नाति तस्य देहः स्यात् सुगन्धिर्भास्करचाहिये । च्छविः॥ (३१५२) देवदादिलेपः (४) ___ हल्दी, दारु हल्दी, तिल, कूठ, और लाल (वं. से. । क्षुद्र.) सरसों ( या बाबची ) को पानीमें पीसकर शरीर मुरदारुशिलाकुष्ठैः स्वेदयित्वा प्रलेपयेत् ।। पर उबटनकी भांति मलनेके पश्चात् स्नान करनेसे कफमारुतशोथनो लेपः पाषाणगर्दभे ॥ शरीर सुगन्धियुक्त और सुन्दर हो जाता है । _____ कफवातज पाषाणगर्दभ रोग (ठोडीकी (३१५६) दिनिशादिलेपः (१) सन्धिकी सूजन) में पसीना दिलाने के बाद देव- (शा. सं. । उ. अ. ११) दारु, मनसिल और कूठका लेप करना चाहिये। द्वेनिशे चन्दने द्वे च शिवा दूर्वा पुनर्नवा । (३१५३) दोषनलेपः | उशीरं पद्मकं लोधं गैरिकश्च रसाञ्जनम् ॥ ( शा. सं. । उ. अ. ११; भा. प्र. । प्र. ख. ) | आगन्तुके रक्तजे च शोथे कुर्यात्मलेपनम् ॥ पुनर्नवां दारु शुण्ठी सिद्धार्थ शिग्रुमेव च। हल्दी, दारु हल्दी, सफेद चन्दन, लाल पिष्ट्वा चैवारनालेन प्रलेपः सर्वशोथजित् ॥ 'चन्दन, हर्र, दूर्वा, पुनर्नवा, खस, पनाक, लोध, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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