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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [९२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि पानीके साथ पीस लें । पक्क और शोथयुक्त अन्त- हिंगुल (शंगरफ), गन्धक, पारा, पीपल, विद्रधि में इसका लेप करना हितकारक है । मीठातेलिया ( बछनाग), बायबिडंग, हल्दी, (३१३८) दन्त्यादिलेपः (२) चीता, काली मिर्च, हर्र, सेठ, नागरमोथा, समुद्र(रा. मा. । क्षुद्ररोगा.) | फेन, बाबची, कपूर, अमलतासके पत्ते, और पंवाड़ निकुम्भवातारिफलैर्जलेन के बीज समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी संपेषितैः कुरुते प्रलेपम् । कजली बनावें और फिर अन्य ओषधियों का तस्योपशान्ति पिटिकाः प्रयान्ति महीन चूर्ण मिलाकर घोटें । इसे नीमके रसमें समस्तदोषप्रभवाः क्षणेन ॥ मिलाकर लेप करने से दादकी खाज, विसर्प, लतादन्तीके बीज ( जमाल गोटा ) और अरण्ड- विष ( मकड़ीका जहर ), भगन्दर और मण्डल के बीजेांको पानीके साथ पीसकर लेप करनेसे | | कुष्ठ, अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता है। सभी दोषांसे उत्पन्न पिटिकाएं (पुंसियां) (३१४१) दशाङ्गालेपः अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाती हैं। (वृ. यो. त. । त. २३; शा. स.। उ. अ. ११; (३१३९) दन्त्यादिलेपः (३) वं. से.; वृ. नि. र.; यो. र.; ग. नि. । विसर्प; (रा. मा. । अ. १७; ग. नि. । भगन्दरा.) यो. त. । त. ६५) दन्तीनिशामलकलेपितमाशु नाशं शिरीषयटीनतचन्दनैला मांसीहरिद्राद्वयकुष्ठवालैः। पुंसां भगन्दरमुपैत्यपि दुर्निवारम् । लेपो दशा सघृतः प्रयोज्यो वीसर्पकुष्ठवणदन्तीमूल, हल्दी और आमलेको पानीके सा शोथहारी॥ थ पीसकर लेप करनेसे दुस्साध्य भगन्दर भी सिरसकी छाल, मुलैठी, तगर, लाल चन्दन, शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। इलायची, जटामांसी, हल्दी, दारुहल्दी, कूठ, और (३१४०) दरदादिलेपः सुगन्ध बाला । सब चीज़ोंका समान भाग महीन (यो. र. । कुष्ठ; वृ. नि. र. । त्वग्दो .) चूर्ण लेकर एकत्र मिलावें । दरदगन्धकपारदपिप्पली ___इसे धीमें मिलाकर लगानेसे विसर्प, कुष्ठ, विषविडङ्गनिशाग्निमरीचकम् । | अण और शोथ नष्ट होता है । अभयशुण्ठिघनाब्धिकवाकुची (३१४२) दारुषटकादिलेपः कटुनृपद्रुममेडगजान्वितम् ॥ (सु. सं.; वृ. नि. र. । आनाह; भा. प्र. । शूल.; सममिदं खल निम्बरसैयुतं भा. प्र. ख. २ । वात.; वृ. नि. र. । वात.; रतिकण्डनिका वृ. यो. त. । त. ९०) हरति लुतभगन्दरमण्डलं देवदारु क्या कुष्ठं शताहा हि सैन्धवम् । तनुविलिप्तमहो क्षणतो नृणाम् ।। । पपिष्ट्वा काञ्जिके लेपादानाहं नाशयत्यपि ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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