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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (७४) सप्ताहमुष्णे द्विगुणं तु शीते, स्थितं जलद्रोणयुतं पिबेना । शोफान्विबन्धकफवातजांश्च, सहन्त्यरिष्टोऽष्टशतोग्निकुच ॥ www.kobatirth.org भैषज्य रत्नाकर [२०१] अजगन्धादि लेपः (बृ. नि. र. ) भारत-भ 1 | खम्भारी के फल, आमला, काली मिर्च, हैड़, बहेडा, मुनक्का और पीपल, प्रत्येक ६ | सेर | पुराना गुड़ और शहद प्रत्येक १२ || सेर | सबको ३२ सेर पानीमें मिलाकर शहद से लेप किये हुवे मटके में भरकर यथाविधि सन्धान कर - गरमियों में १ सप्ताह तक और जाड़ोंमें २ सप्ताह तक रक्खा रहने दे । यह अरिष्ट कफ वातज सूजन और विबन्ध का नाश तथा अग्नि प्रदीप्त करता है । अथ अकारादि लेप प्रकरणम् [२००] अहिफेनासवः (भै. र.) तुला मधूकमद्यस्य शुभे भाण्डे परिक्षिपेत् । फणिफेनस्य कुडवं मुस्तकं पलसम्मितम् ॥ जातीफलञ्चन्द्रयवं तथैलां तत्र दापयेत् ॥ रुद्धा भाण्डं मासमात्रं यत्नतः परिरक्षयेत् ॥ हन्त्यतीसारमत्युग्रं विसूचीमपि दारुणाम् ॥ महुवे की शराव १२ ॥ सेर, अथवा ( रेक्टीफाइड स्प्रिट), अफीम २० तोले, नागरमोथा, जायफल, इन्द्रयव और इलायची प्रत्येक ५-५ तोले । सबको यथाविधि मिट्टी के बरतन में सन्धान करके एक मास तक सुरक्षित रक्खे | इसके सेव - नसे अत्यन्त प्रबल अतिसार और दारुण विसूचिका (हैजे ) का नाश होता है । (मात्रा:- १० बूंद ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२०३] अयोरजादिलेप: (१) (बृ. नि. र., यो. चि . ) अयोरजो भृंगराजस्त्रिफला कृष्णमृत्तिकाः । स्थित मिक्षुरसे मासं लेपनात् पलितं जयेत् ॥ लोहका बुरादा, काला भांगरा, त्रिफला और काली मिट्टी को ईखके रसमें १ मास तक भीगा रहने दें | इसका लेप करने से पलित (बालोंका सफेद होना) रोगका नाश होता है [२०४] अयोरजादि लेपः (२) ( वृ. नि. र. ) अजगन्धाश्वगन्धा च काला सरलया सह । ॥ कम्पिलका च भृंगी च प्रलेपः श्लेष्मशोथहा बनतुलसी, असगन्ध, कालानिसोत, सरल काष्ठ, कमीला और काकड़ासींगी । इनका लेप कफजनित सूजन का नाश करता है । [२०२] अजाज्यादि लेपः (वृ. नि. र.) अजाजी हबुषा कुष्ठं गोमयं बदरान्वितम् । काञ्जिकेन तु सम्पिष्टं कुर्याद ब्रघ्नप्रलेपनम् ॥ जीरा, हाऊबेर, कूठ, गायका गोबर और बेर को काञ्जी में पीसकर लेप करने से वदका नाश होता है । अयोरजः सकासीसं त्रिफला कुसुमानि च । प्रलेपः कुरुते दायः सद्यएव नवत्वचि ॥ | लोहेका बुरादा, कसीस, त्रिफला, लौंग और दारु हल्दी का लेप करने से नवीन त्वचाका रंग For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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