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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२) भारत-भैषज्य-रत्नाकर तक चलाता रहे जब तक कि कठिन न हो जाय | अजमोद (अजवायन), लोहभस्म, अभ्रकभस्म, कठिन होनेपर चूर्ग करके इसमें ३५ तोला गिलोयका काकडासांगी, कायफल, नागरमोथा, इलायची, सत मिलाकर मधुमिश्रितकर ३६० गोलियां बनावे । | जायफल, जटामांसी, तमालपत्र, तालीस पत्र, इनमें से प्रत्येक हैड़में १-१ गाली भरकर उस पर | नागकेशर, अजवायन, कचूर, मुल्हेटी, लौंग और होरा लपेट दे । इन हैड़ोंको शहदमें डालदे और | लाल चन्दन । सब समान भाग, सोंठका चूर्ण इसमें से प्रतिदिन १-१ सेवन करे तो शुष्क पाण्डु | सबके बराबर, मिश्री सबसे दो गुनी, गायका दृध रोगका नाश होगा। ४ गुना मिलाकर विधिवत पाक बनावे । मात्रा-१ [१५०] अमृताधवलेहिका । तोला, पानी या दूधके साथ । गुण-अम्लपित्त, - (या. र. वा. र.) अरुचि, शूल, हृद्रोग, वमन,कण्ठदाह, हृदयकी जलन, अमृताकटुकाशुण्ठी यष्टीकल्कं समाक्षिकम् । । | शिर शूल, मन्दाग्नि, हृदय, पार्श्व, कोख, बस्तिका गोमत्रपीतं जयति सकफ वातशोणितम् ॥ शूल और गुदाकी पीडाका नाश करता है तथा गिलोय, कुटकी, सोंठ और मुल्हेठीका कल्क | बल और पुष्टि देता है विशेषकर अम्लपित्त, शहद में मिलाकर चाटे और ऊपरसे गोमूत्र पीवे तो मूत्रकृच्छ, ज्वर और भ्रम का वैसे ही नाश करता कफप्रधान वातरक्तका नाश होता है। है जैसा सूर्य अन्धकार का। [१५१] अम्लपित्तहरपाकः [१५२] अश्वगन्धापाकः (१) ___ (यो. र., वृ. नि. र.) त्रिकटुत्रिफलाभृङ्गजीरकद्वयधान्यकम् । कुष्ठाजमोदलोहाभं शृङ्गीकट्फलमुस्तकम् ॥ पलान्यष्टावश्वगन्धां विपाच्य एला जातीफलं मांसी पत्रं तालीशकेशरे । ___ दुग्धे षट्शेरके मन्दवहौ। गन्धपत्राशटी यष्टी लवङ्गं रक्तचन्दनम् ॥ दालेपो यावदास्ते सुपक्क एतानि समभागानि शुण्टीचूर्ण तु तत्समम् ।। चातुर्जातं क्षिप्य कर्पप्रमाणम् ॥ सिता द्विगुणिता तत्र गव्यक्षीरं चतुर्गुणम् ।। जातीजातं केशरं वंशसत्वंनोलप्रमाणं दातव्यं क्षीरेणापि जलेन वा। ____मोचं मांसी चन्दनं कृष्णसारम् । अम्लपित्तं निहन्त्येतदरोचकनिदनम् ।। पत्रीकृष्णापिप्पलीमूलदेवशूलहृद्रोगवमनं कंठदाहं नियच्छति। ___ पुष्पं ककोलालिका क्षोटसारम् ।। हहाहं च शिरः शूलं मन्दाग्निं च विनाशयेत् ।। भल्लीबीजं शृङ्गटं गोक्षुराख्यंशुलं हत्पार्श्वकुक्षिस्थं पस्तिशूलं गुदेरुजम् । सिन्दूरानं नागवङ्गं च लोहम् । बलपुष्टिकरं चैव वशीकरणमुत्तमम् ॥ कर्षाद्धि सर्वचूर्ण प्रकल्प्य. विशेषादम्लपित्तं च मूत्रकृच्छं ज्वरं भ्रमम् । संशोप्याथो शर्करापक्कपाके ॥ निहन्ति नात्र सन्देहो भास्करस्तिमिरं यथा । पक्वा शीतं फारयेदश्वगन्धा त्रिकुटा, त्रिफला, दोनों जीरे, धनियां, कूट, पाकोऽयं वै हन्ति मेहानशेषान् । For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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