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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-अवलेह (५१) - घी में आलोडन करे फिर उसमें त्रिकुटा, त्रिफला, । षडूषण, पांचों नमक, हींग, यवक्षार, सुहागा, जीरा, कपूर, जटामांसी, निसोत,बंसलोचम, खैरसार, शुद्ध | अजमोद प्रत्येक १-१ भाग, निसोत सबका आधा। विष(वत्सनाभ), चन्दन, अकरकरा, पीपल, कबाब | इनका महीन चूर्ण करके कपडे में छानकर चूकेके चीनी, लौंग, दोनों प्रकार की मूसली, कंकोल, | रसमें घोटकर उन हैड़ों के बीचमें बीजोंके स्थानमें मोचरस, सफेद जीरा, काला जीरा, तगर, गज | भरकर डोरेसे बांधकर सुखा देवे । इसमें से प्रति पीपल, विदारी कन्द, जायफल, नागरमोथा, जावित्री, | दिन १ हैड़ खानेसे मन्दाग्नि, उदरविकार, शूल, करंजबीज, जीरा, अगर,समंदरशोष, मेदा, महा मेदा, ग्रहणी, मस्से, अफारा और आमबातका नाश लोहभस्म, रससिंदूर, बंगभस्म, अभ्रकभस्म और | होता है । केसर प्रत्येक ११-१। तोला लेकर पहिले चूर्ण बनावे । [१४९] अमृताख्या हरीतकी फिर घृतमें डाल कर भली प्रकार मिलाकर सातदिन (र. रा. सु. पां. चि.) तक रक्खा रहने दे इस प्रकार जातवीर्य होने पर | शतावरी भृङ्गराजपुनर्नवकुरण्टकः । यह अमृतसमान गुणदायी हो जाता है। मात्रा | प्रतिसप्तपलं द्रव्यं जले क्वाथ्यं चतुर्गणे॥ गुणपथ्यादि नं. १४६ के अनुसार । पादशेषं कषायं तं वस्त्रपूतं समाहरेत् । [१४८] अमृतहरीतकी हरीतकीफलं तस्मिन् षष्टयाधिकशतत्रयम् ।। __(यो. र. अ. चि.) पाचयेच्छोषयेत्पश्चाविंशदुग्धपलैः पयेत् । तके समुत्स्वेध शिवा शतानि, भित्वा निवारयेद्दण्डं तद्गर्भे च क्षिपेदिदम् ।। तद्वीजमुद्धृत्य च कौशलेन । षट्पलौ रसगन्धौ द्वौ सुपात्रे च क्षणं पचेत् । षडषणं पञ्चपटूनि हिङ्गु, उत्तार्य चालयेत्तावद्यावत्कठिनतां प्रजेत् ॥ क्षारावजाजीराजमोदकश्च ॥ चूर्णयित्वामृतासत्वपलान् सप्त विमिश्रयेत् । पडूषणादेखिदई भागं, मधुना वटिकाः कार्याः षष्ठयधिकशतत्रयम् ।। गणे प्रदेयं पटगालितस्य । एकैकां यमयागर्भे कृत्वासूत्रेण वेष्ठयेत् । विभाव्य चुक्रेण रजांस्यमीषां, मधु भाण्डे क्षिपेत्पश्चादेकैकं भक्षयेदिनम् ॥ क्षिपेच्छिवावीननिवासगर्भ ।। शुष्कपाण्डहरा सम्यगमृताख्या हरीतकी । सम्मुद्रय धर्मेषु विशोष्य तासां, ___ शतावर, भांगरा, पुनर्नवा, कुरंटक, प्रत्येक हरीतकीमन्यतमा निषेवेत् । ३५ तोला, चारगुने जलमें पकाकर चौथा भाग अजीर्णमन्दानलजाठरामयान् , रहनेपर कपड़े छान ले । फिर उसमें ३६० हैड समूलशूलग्रहणीगुदाकुरान् ।। डालकर पकावे और सुखाकर फिर उन्हें १५० तोला विबन्धमानाहरुजो जयत्यसौ, दूधमें पकावे । फिर उनकी गुटली निकालकर उनके तथामवाताममृताहरीतकी ॥ भीतर नीचे लिखी गोलियां भरे-शुद्ध पारा ३० तोला, १०. हैडों को तक्रमें पकाकर मुलायम होने शुद्ध गन्धक ३० तोला (कज्जली करके) किसी स्वच्छ पर उनकी गुठली कुशलतापूर्वक निकाल डाले फिर ' पात्रमें थोड़ी देर तक पकावे फिर उतारकर उस समय For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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