SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 646
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् ] परिशिष्ट ६२७ (९५५३) कार्पासिकायोगः उसमें मूंगका यूष बनावें । इसे पीनेसे हिचकी और ( रा. मा. । बीरागा.) श्वास का नाश होता है । कार्पासास्थि विपक्रमादिष इसी विधिसे सहजनेके पत्तोंके या सूखी मूलीके घृताभ्यता पुनश्चूर्णितः। | क्वाथमें मूंगका यूष बनाकर देनेसे भी हिचकी कार्पासास्थिभिरेव च और श्वास नष्ट होता है। ___ प्रमदिता कार्पासमूलोद्भवा ॥ (९५५६) किण्वाचा वतिः पतियोनिसमुत्थशूलशमनी सघो भषेधोषिताम् ( रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०) कपासकी जड़के एक (८-१० अंगुल लम्बे) किण्वकणागुडदन्तिमदनचिकने टुकड़े पर कपासके बीजोंके कल्क और ___ फलैः कालावुफलबीजैः। क्वाथ से पका हुवा भैसका घी लगाकर उस पर | यवक्षारयुतैः स्नुहीक्षीर. कपासके बीजोंका चूर्ण छिड़ककर योनिमें रखने से भावितैश्च कल्पयेतिम् ॥ योनिशूल शीघ्र नष्ट हो जाता है। सा योनिकुहरनिहिता स्त्री(९५५४) काश्मरीफलयोगः णामत्यन्त नष्टकुसुमानाम् । (रा. मा. । कुष्ठा. ८ ; ग. नि. । शीतपित्ता. ३७) कुसुमप्रवृत्तिजननी निर्दिष्टा वृद्धभावेऽपि ॥ कालेन पार्क प्रातपय शुष्क शराबकी गाद, पीपल, गु, दन्तीमूल, मैनगम्येन सिद्ध पयसोपयुक्तम् । फल, कड़वी तूंबीके बीज और जवाखार; इनके काश्मयमाशु प्रतिहन्ति चूर्णको एकत्र मिलाकर स्नुही ( थूहर ) के दूधकी शीतपित्तं हिताहाररतेन लीठम् ॥ भावना दें। इस चूर्णको ( पानीमें पीसकर कपड़ेमें लगाकर ) वर्ति बनावें । इसे योनिमें रखनेसे खम्भारीके वृक्ष पर स्वयं पके और सूखे हुवे | वृद्धा स्त्री का भी सर्वथा नष्ट हुवा मासिक धर्म भी फलों को गायके दूध में पकाकर खाने और पथ्य से खुल जाता है। रहने से शीत पित्त शोघ ही मष्ट हो जाता है। (९५५५) कासमर्दादि योगः (९५५७) किंशुकवीजयोगः (वृ. मा. । हिका. ; यो. र. । हिक्का.) ( वै. म. र. । प. ५) कासमर्दकपत्राणां यूपः सौभाअनस्य च। किंशुकबीजपरागैर्लशुनपुनर्भप्रवाहसंयुक्तः । शुष्कमूलकयूपश्च हिकाचासनिवारणः ॥ । पोलिका तिलजाक्ता स्पेदादीसि नाशयति ॥ ११ तोला कसौंदीके पत्तोंको २ सेर पानीमें | पलाश के बीज, पलाशके फूलकी , केसर, पकावें और १ सेर रहने पर छान लें और फिर | लहसन और पुनर्नवा (बिसखपरा ) की कोपल For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy