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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२८ भारत-मेषज्य रत्नाकरः (ककारादि - समान भाग लेकर सबको एकत्र पीसकर पोटली । (९५६०) कुबेराक्षयोगः (१) बनावें । इसे तिलके तेलमें भिगोकर गरम करके (ये. म. र. । पटल ४) ( या गरम तेल में भिगो भिगो कर ) उससे स्वेदित करनेसे अर्श रोग नष्ट हो जाता है । प्रयान्ति तद्भक्षयतां प्रभाते कुबेरनेत्राभिनवं प्रवालम् । (९५५८) कुकुमादियोगः नृणां शमं यरुचिपसेकाः (व. सें. । शिरोरोगा.) ससैन्धवं नागररामठं वा ॥ भृष्टाज्ये कुड्म किश्चिपिहितं सितया समम् । प्रातः काल लता-करंज के नवीन पत्ते खाने पिष्टं छगल्या क्षीरेण भुक्तं पित्तविनाशकम् ॥ | से या सेंधा नमक, सोंठ और होंगका चूर्ण (अथवा एतदविभेदघ्नं सूर्यावर्तशिरोत्तिनुत । इस चूर्णके साथ करंजके पत्ते) खानेसे छर्दि, अरुचि और प्रसेक ( मुंहसे थूक आना )का नाश होता है। केसरको जरा धीमें भूनकर समान भाग खांड (९५६१) कुबेराक्षयोगः (२) मिलाकर, बकरी के दूधमें पीसकर पीनेसे पिसज शिरोरोग, भविभेद, सूर्यावर्त और शिरशूल का (वै. म. र. । पट. ६) नाश होता है। यक्षलोचनमान काभिकेन पिबेत्सगे। (९५५९) कुटजादिक्षीरम् सश्लेष्मरक्तातीसार कोष्ठंशूलं जयेद् द्रुतम् ॥ (हा. सं. । स्या. ३ अ. ११) ___लताकरंजके बीजोंकी गिरी कांजीके साथ प्रातः काल पीनेसे कफयुक्त रक्तातिसार तथा उदर कुटजमूलसकेसरमुत्पलं शूल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। खदिरधातुकिमूलभृतं पयः । पिपति म्रक्षणयोगममृम्भव (मात्रा-४-६ रत्ती) गुदजनाशनकारि विचारितम् ॥ (९५६२) कुशादिक्षीरम् ( वृ. मा. । स्त्री रोगा.; व. से. । खीरोगा. ; कुड़ेकी जड़की छाल, नागकेसर, कमल, | . खैरसार और धायकी जड़ समान भाग मिलित २ यो. र. । स्त्रीरोगा.) तोले, दूध १६ तोले और पानी ६४ तोले लेकर कुशकाशोरुकाणां मूलैगोक्षुरकस्य च । सबको एकत्र मिलाकर पकावें। जब पानी जल शृतं दुग्धं सितायुक्तं गर्मिण्याः शूलमुत्परम् ॥ जाय तो दूधको छान लें । इसमें मक्खन मिलाकर कुश, कास, अरण्ड और गोखरु; इनको पीनेसे रक्तार्शका माश होता है । जड़ समान भाग मिलित २ सोले लेकर कूटकर For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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