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६२६ भारत-भैषज्य-रत्नाकर
[ककारादि (९५४८) काकोदुम्बरयोगः (९५५०) काञ्जिकादियोगः (वै. म. र. । पट. ३)
( रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०) काकोदुम्परपल्लवं शकलितं दुग्धे गवां पाचितं ।
क्वयितकाक्षिकसंयुतमाहता किशिन्मिश्रितमाग, दिनमुखे पीत्वा पयस्ता
सुरभिहिङ्गुविचूर्णितमाना। शम् ।।
पिबति या सितसैन्धवसंयुतं कासश्वासमशेषमाशु शमयेद्रादप्रसूनान्वित
मुखयुत प्रसवं लभते धुवम् ॥ क्षीरं सदादिदं द्वयं च भिषजां कीर्तिपदं कांजीमें हींग और सफेद सेंधा नमक मिला
कीर्तितम् ।। | फर पकाकर पिलाने से प्रसव सुखपूर्वक हो जाता है। कठूमरके पत्तोंको कूटकर गोदुग्धमें पकाकर ___ काजीसिद्धहरीतकी उसमें जरासी पीपल मिलाकर प्रातः काल पीने से प्र. सं. ८४७४ "हरीतक्यादिचूर्णम्"देखिये। कास श्वासका नाश होता है।
(९५५१) कारवेल्लीमूलाश्च्योतनम् (पते २॥ तोले, दूध २० तोले, पानी ८० तोले; सबको मिलाकर पानी जलने तक पका (रा. मा. । नेत्ररोगा. ३; ग. नि. । नेत्ररो.) और छान लें । पीपलका चूर्ण १ माशा । ) मलेन कारवेल्ल्यास्तुरसमूत्रान्वितेन पिष्टेन ।
इसी प्रकार मैनफलके फूलों के साथ पका हुवा | परिपूरितनयनानां नीलीदोषः शमं याति ॥ दूध भी कास श्वासको नष्ट करता है। । करेलेको जड़को घोड़ेके मूत्रमें पीसकर आंखमें
ये दोनों प्रयोग वैद्योंको यश दिलाने वाले हैं। डालनेसे नीली (काच) नामक नेत्र रोग नष्ट होता है। (९५४९) काञ्जिकयोगः
(९५५२) कार्पासभस्मयोगः. (ग. नि. । अजीर्णा. ५)
(वै. म. र. । पट. ११) कुन राशननवीनपल्लवै
समूलतूलं संशुष्कं कार्पासं भस्मसास्कृतम् । राजिकाभिरपि संयुतं शृतम् । तद्भस्मद्विगुणं शालितण्डुलं पयसोदनम् ॥ कामिकं सलवणं विचिका
घृतेन सह भुनीत सर्वश्वयधुनाशनम् ।। नाशयत्यलसकं च वेगतः ॥ ___ कपास और उसकी जड़को एकत्र मिलाकर
अश्वत्थ ( पीपल वृक्ष ) के नवीन पत्ते और भस्म करें । तदनन्तर १ भाग यह भस्म और २ राई को कांजीमें पकाकर छानकर सेंधा नमक भाग शाली चावल एकत्र मिलाकर, दूधमें पकाकर मिलाकर पिलाने से विसूचिका और अलसकका | भात बनावें । इसमें घृत मिलाकर सेवन करने से शीघ नाश होता है।
हर प्रकारका शोथ रोग नष्ट होता है ।
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