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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ककारादि - अथ ककारादिधूपप्रकरणम् (९४३०) ककुभादिधूपः मछली काट खाय तो मनुष्यके बाल और (यो. र. । कृम्य.) सत्तू ( जोका सत्तू ) कड़वे तेल में मिलाकर दंशकाकुभकुसुमविडङ्ग लाङ्गलिभल्लातकं तथोशीरम। स्थानपर उसकी धूप देनी चाहिये। यह उत्तम प्रयोगहै श्रविष्टकसर्जरसं चन्दनमथ कुष्ठमष्टमं दधात् ॥ (९४३३) कस्तूरिकादिधृपः (रा. मा. । स्त्रीरोगा.) एषा सुगन्धो धूपः सकृत्कृमीणां विनाशकः । प्रोक्तः। कस्तूरिघनसारकुङ्कमनखैलाशातुरष्कान्वितैः शय्यामु मत्कुणानां शिरसि च गात्रेषु यूकानाम्॥ , श्रीखण्डागुरुकुष्ठमाक्षिकयुतधूपो वराङ्गे कृतः । "" स्त्रीणां इन्ति विगन्धता अर्जुनके फूल, बायबिडंग, कलियारी की जड़, वितनुते सौगन्ध्यमत्युत्तमं भिलावा, खस, धूप सरल, राल, चन्दन और कूठ सौभाग्यं कुरुते मृदुत्व समान भाग लेकर बारीक कूट लें। मसमं धत्ते तनोति श्रियम् ॥ इसकी धूपसे कृमि नष्ट हो जाते हैं । यदि कस्तूरी, कपूर, केसर, नखी, लाख, शिलारस खाटको इसकी धूप दी जाय तो खटमलेांका और । (या श्रीवास धूप ), चन्दन, अगर और कूठ शिर तथा शरीरको दी जाय तो जुवों का समान भाग लेकर एकत्र कूट लें। इसे शहदमें नाश हो जाता है। मिलाकर योनिको धूप देनेसे योनिको दुर्गन्ध नष्ट ___ (९४३१) कटुतुम्ब्यादिधूपः | | होकर उत्तम सुगन्ध आने लगती है। ( व. से. । स्त्रीरोगा. ; ग. नि. । मूढगर्भा. ) (९४३४) काकमाचीफलधूपः (ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) कटुतुम्ब्यहिनिर्मोककृतवेधनसर्षपैः । कटुसैलान्वितैर्योनेधूपः पातयतेऽपराम् ।। काफमाचीफलैकेन घृतयुक्तेन बुद्धिमान् । | धुपयेपिल्लरोगात पतन्ति कृमयोचिरात ॥ ___ कड़वी तूंबी, सांपकी कांचली, अमलतास | - मकोयके एक फल को घृत लगाकर उसे और सरसों समान भाग लेकर एकत्र कूट लें। आगपर डालकर आंखमें उसकी धूनी देनेसे तुरन्त इसे सरसों के तेलमें मिलाकर योनिको धूप देनेसे आंखसे कृमि निकल कर पिल्ल रोग नष्ट होजाता है। अपरा निकल जाती है। (९४३५) कुष्ठादिधूपः (९४३२) कटुतैलादिधूपः (मत्स्यदेशे) (हा. सं. । स्था. ३ अ. ११) (रा. मा. । विषा. २८) । कुष्ठं पथ्या तथा निम्बपत्राणि च मनःशिला। धूपः पुनः कटुकतैलनृकेशसक्तु- तस्मान्मधु घृतं मिश्रं निधूमाङ्गारके क्षिपेत् ॥ युक्तोऽस्य दंशपदके मुतरां प्रशस्तः। । धूपयेद् गुदजास्तेन यथा सम्पद्यते सुखम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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