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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३८) भारत-भैषज्य रत्नाकर हो जाती है । गमनशक्ति अत्यन्त बढ़ जाती है। , सप्तमे वाजिवेगः स्यादष्टमे मन्त्रसाधकः । तेज सूर्यके समान और रूप कामदेवके समान | सर्वज्ञो नवमे मासि दशमे पवनोपमः ॥ हो जाता है । इसे सेवन करने वालेकी आयु एक स्त्रीजिदेकादशे मासे नाग्निना द्वादशे दहेद हजार वर्षकी होनी संभव है । वह गन्धर्व के स- बलीपलितनिमुक्ती युवकादधिको भवेत् ॥ मान गायक और महा सत्ववान हो जाता है। एवं संवत्सरं यावधः करोति पुमानिह । सौ स्त्रियोंके साथ समागम करने पर भी उसमें | वत्सराणां सहसानि जीवेन्नास्त्यत्र संशयः ।। शिथिलता नहीं आती, उसे कोई रोग नहीं सताता। हरड, बहेडा, आमला, गिलोय, नागरमोथा, उसका शरीर सुगन्धमय और पुष्पके समान को- | विधारामूल,बायबिडंग और बच १०-१० तोले मल हो जाता है। जिस प्रकार पत्र शाखा आदि | तथा सोंठ, काली मिर्च, पीपल, पीपलामूल, सुगन्धसे हीन कन्द वर्षासे पुनः अङ्कुरित हो जाते हैं | बालाकी जड़, चीतामूलकी छाल, दालचीनी, उसी प्रकार इस प्रयोगके सेवनसे वृद्धावस्थासे मुर- इलायची और नागकेशर ५-५ तोले लेकर बारीक झाया हुवा शरीर नवयौवन युक्त हृष्ट पुष्ट पाप चूर्ण बनावें । यह १२५ तोले चूर्ण, २५० तोले (रोग) रहित और शान्त स्वभाव युक्त हो जाता | गुड़की चाशनीमें मिलाकर सबके ३६० मोदक है। इस "अमृतवर्तिका" नामक श्रेष्ठ रसावन का बना लें। आविष्कार श्रीमृत्युञ्जय भगवान ने किया था। (पश्च कर्म द्वारा) शरीर शुद्धि करके शुभ [१२३] अमृतसारगुटिका दिनमें इनका सेवन आरम्भ करे । इनमें से १ (र. र. रसायने) मोदक प्रतिदिन भोजनके अन्तमें शीतल जलके फलत्रिकामृतामुस्तवृद्धदारविडङ्गकम् । साथ सेवन करनेसे १ मासमें समस्त रोग नष्ट हो पचानामेकशंश्चैव द्विपलं द्विपलं भवेत् ।। जाते हैं । दूसरे मासमें शरीर पुष्ट हो जाता है। कटुत्रिकं कणामूलं जलमूलकचित्रकैः। तीसरे मासमें शरीर कान्ति स्वर्ण के समान हो स्वगेलानागचूर्णानां प्रत्येकं च पलं पलम् ॥ जाती है। चौथे मासमें अत्यन्त शुक्र वृद्धि होती सर्व वर्णमिदं इलक्षणं पलानां पञ्चविंशतिः।। है और पाचवें मासमें मनुष्य अत्यन्त मतिमान हो द्विगुणेन गुडेनैव मोदकं परिकल्पयेत् ॥ जाता है। छठे मास में सहस्रों हाथियों से भी शतत्रयं षष्टयधिकं प्रत्यहं भोजनोपरि। अधिक बल आ जाता है । सातवें मास में घोडेके सुविशुद्धशरीरस्तु शस्ते काले शुभे दिने । समान तीव्र गमनकी शक्ति आ जाती है। आठवें एकैकं कृत्वा काले च भक्षयेदमृतोपमम् । मासमें मन्त्रसाधनकी सामर्थ्य आ जाती है। नवे जलं वा अनुपातव्यं भोजनं सार्वकामिकम् ॥ | मासमें मनुष्य सर्वज्ञ और दसवें में वायुके समान मासे तु प्रथमे सर्वान्व्याधींश्च नाशये ध्रुवम् । (वेगयुक्त) हो जाता है। ११ मास तक इसे द्वितीये पुष्टिजननं तृतीये कनकपभः॥ सेवन करने से पुरुष खिजिरे हो जाता है तथा १२ चतुर्थे शुक्रबहुलः पञ्चमे तु महामतिः।। मासके सेवनसे वह अग्नि में भी नहीं जलता एवं षष्ठे मागसहस्राणां बलादेवातिरिच्यते ॥ बलिपलित रहित युगको भी अधिक यौवनयुक्त हो For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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