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अकारादि-गुटिका
बराबर गोलियां बनावे। ये गोलियां अजीर्ण, कफ रोग, वायुरोग नाशक तथा अग्नि दीपक और रुचि धर्द्धक है ।
[१२१] अमृतवटी (२) (भै. र. अ. मां.) अमृतवराटकमरिचैर्द्विपञ्चनवभागिकः क्रमशः वाटिका मुद्रसमाना कफपित्ताग्निमान्द्यहारिणी ||
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( ३७ ) दिनेश इव तेजस्वी कन्दर्प इव रूपवान् ॥ सहस्रायुर्महावो गन्धर्व इव गायकः । स्त्रीशतं रमते नित्यं नावसादं व्रजत्यसौ || न भजन्त्यापदः काश्चित्कामरूपी भवेदसौ । पद्मगन्धि वपुस्तस्य पुष्पस्येव सुकोमलम् ॥ जराचयैः सुजीर्णस्य नखकेशादयो यथा । प्रभवन्ति बलादुग्रादथ कन्दा इवाम्बुदात् ॥ हृष्टः पुष्टश्च पापन्नः शान्तो भवति मानवः । श्री अमृतवर्तिकानाम मृत्युञ्जयमुखोदिता । रसायनानां श्रेष्ठेयं सर्वव्याधिनिषूदनी ॥
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शुद्ध मीठा तेलिया २ भाग, कौड़ी भस्म ५ भाग, काली मिर्च ९ भाग लेकर (पानी या नीबुके रसमें खरल करके) मूंगके बराबर गोलियां बनावे | इनके सेवन से कफ, पित्तरोग और अग्नि मान्यका नाश होता है ।
हरड, बहेड़ा, आमला, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, ब्राह्मी, गिलोय, लाल चीता, नागकेशर, सांठ, काला भंगरा, संभालके पत्ते, हल्दी, दारुहल्दी, इन्द्रजौ, दालचीनी, इलायची, खंभारी, बायबिडंग और बच, १०-१० तोले लेकर चूर्ण बनावें और उसे २५० तोले कामरूप देशके उत्तम गुड़की चाशनी में मिलाकर ३६० गोलियां बना लें ।
[१२२] अमृतवर्तिका ( भै. र रसायने ) त्रिफला त्रिकटु ब्राह्मी गुडूची रक्तचित्रकम् । नागकेशरचूर्णश्च शृङ्गवेरं समार्कनम् ॥
सिन्दुवारो हरिद्रे द्वे शक्राशन गुडत्वचौ । एला मधुपर्णी व विडङ्गोग्रन्धिका ॥ चूर्ण प्रत्येकमेतेषां समादाय पुलम् | कामरूपसमुद्भूतैर्गुडैः पञ्चाशते ॥ पष्टित्रिंशती कार्या वर्तिस्तेन समानतः । चन्द्रताराविशुद्धौ च पूजयित्वे देवताम् ॥ सुकृति प्रज्ञया प्रीतो वर्तिकां तु भक्षयेत् । ततोऽनुपानं पानीयं सलिलं च सुशीतलम् || कट्वम्ललवणञ्चैव नातिमात्रं कदाचन । यः प्रत्यहमिदं खादेत्कर्षमानं निरन्तरम् ॥ भोजनादौ प्रदोषे वा शृणु यादृक् फलं भवेत् । नष्टवन्तु दीप्ताग्निर्वडवानलसन्निभः ॥
पि भवती कान्तिचन्द्रिकेव निशामुखे । काशपुष्परुचः केशाः शिखिकण्ठमनोरमाः ॥ पटलावहतं चक्षुर्लक्षयोजनदर्शनम् । जरा विश्लथ देहोऽपि लेपनिर्माणशाद्वलः ॥ निर्व्याधिनिर्जरः पर्वगेनोचैश्रवा इव ।
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शुभ दिन और शुभ नक्षत्र में इष्ट देवताका पूजन करके प्रति दिन भोजनके प्रारम्भ या सायंकालमें १-१ गोली शीतल जलके साथ प्रेम पूर्वक सेवन करे। इनके सेवनकालमें कटु, अम्ल और नमकीन पदार्थों का अधिक सेवन कदापि न करना चाहिए ।
इनके सेवनसे:-- :- नष्ट जठराग्नि वडवानलके समान प्रदीप्त हो जाती है । कान्ती उगते चन्द्रमाके समान भास्मान होने लगती है । काशपुष्पके समान सफेद केश काले हो जाते हैं। पटल युक्त नेत्र भी लक्ष योजन तक देखने में समर्थ हो आते हैं । जराजर्जरित शरीर भी सुगठित मांसल हो जाता है । सब व्याधियां और वृद्धावस्था नष्ट
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