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(३६)
भारत-भैषज्ये-रत्नाकर
[११७] अमरसुन्दरीवटी
अजीर्ण आदिका नाश करती हैं तथा धातु पुष्टि (वृ. नि. र. भा. ५वा. व्या.) और अनुपान भेदसे अनेक रोगों का नाश त्रिकटु त्रिफला चैव प्रन्थिका रेणुकानलम् । | करती हैं। मृतलोहं चतुर्जातं पारदं गन्धकं विपम् ॥ [११९] अमृतप्रभावटी विडङ्गाकल्लकं मुस्ता सर्वेभ्यो द्विगुणो गुडः। (वृ. नि. र. भा. ५; अरुचौ) चणकप्रमाणगुटिका नाम्ना चामरसुन्दरी ॥ परिचं पिप्पलीमूलं लवंगं च हरीतकी । अपस्मारे सन्निपाते श्वासे कासे गुदामये । । यवानी तिन्तिडीकं च दाडिम लवणत्रयम् ।। अशीतिवातरोगेषु उन्मादेषु विशेषतः ॥ एतानि परमात्राणि मागधी क्षारचित्रकम् ।
त्रिकुटा, त्रिफला, पीपलामूल, चीता, लोह व्यजाजी नागरं धान्यमेला धात्रीफलं समम् ॥ भस्म, चातुर्जात, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध एतान् द्विपलिफान् भागान् भावयेद्वीजपूरकैः । मीठातेलिया, बायबिड़ङ्ग, अकरकरा, और नागर- भावनात्रितयं दत्त्वा गुटिकां कारयेद्बुधः ॥ मोथा। सब समान भाग, गुड़ सबके वजनसे छायाशुष्कां प्रकुर्वीत ह्यजीणेस्य प्रशान्तये। दोगुना । चने के बराबर गोलियां बनावे । ये गोलियां | अग्नि च कुरुते घोरं गुटिका चामृतप्रभा॥ अपस्मार, सन्निपात, श्वास, खांसी, गुदरोग, अस्सी - काली मिर्च, पीपलामूल, लोंग, हैड़, अजवाप्रकारके वायुरोग और विशेष कर उन्मादका नाश | यन, तिन्तड़ीक, अनारदाना, सेंधानमक, सौंचलकरती हैं।
नमक, सांभरनमक, प्रत्येक ५तोला, पीपल, यवक्षार, [११८] अमृतकल्पवटी
| चीता, तीनों जीरे, (सफेद जीरा, कालाजीरा और (र. सा. सं. अ. चि)
| कलोंजी) सोंठ, धनिया, इलायची और आमला शुद्धौ पारदगन्धौ च समानौ कन्जलीकृतौ ।
| प्रत्येक १० तोला । सबको महीन करके बिजौरे तयोरद्धं विषं शुद्धं तत्समं टंकणं भवेत् ॥
के रसकी ३ भावना देकर गोलियां बनावे और भृङ्गराजद्रवभाव्य त्रिादन वत्नतः पुनः। छायामें सूखाकर अजीर्ण तथा अग्निमांद्यमें मुद्गप्रमाणा वटिकाः कर्तव्याः भिषजां वरैः॥ प्रयोग करे। वटीद्वयं हरेच्छूलमग्निमांद्यं सुदारुणम् । । [१२०] अमृतवटी (१) अजीणे जरयत्याशु धातुपुष्टिं करोति च ॥
(रसे. चि. म. अ. ९) नानाव्याधिहरा चेयं वटी गुरुवचो यथा। कुर्याद्गन्धविषव्योपत्रिफलापारदैः समैः । अनुपानविशेषेण सम्यग्गुणकरी भवेत् ॥ भृङ्गाम्बुमर्दितैर्मुद्गमात्रामृतवटी शुभाम् । ___ शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक दोनों समान | अजीर्ण श्लेष्मवातघ्नी दीपनी रुचिवधिनीम् । भाग लेकर कजली करे फिर शुद्ध विष और सोहागे शुद्ध गन्धक, विष, त्रिकुटा, त्रिफला, शुद्ध की खील. प्रत्येक पारेकी बरावर डालकर भांगरेके पारद । सब समान भाग लेकर प्रथम पारद रसमें ३ दिन तक घोटे और मूंगके बराबर गोलियां । गंधककी कजली बनावें फीर अन्य द्रव्योंका चूर्ण बनावे । मात्रा-२ गोली । गुण-शूल मंदाग्नि, । मिलाकर भांगरेके रसमें खरल करके मूंगके
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