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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-गुटिका जाता है । इसे १ वर्ष तक सेवन करने से एक ____ चीता, हैड, प्रत्येक १५ तोला, शुद्ध पारद, हज़ार वर्षकी आयु हो जाती है। त्रिकुटा, पीपला मूल, नागरमोथा, जायफल, विधारा [१२४] अमृताङ्करवटी (भै. र. क्षुद्र) प्रत्येक ५ तोला, इलायची, वंसलोचन, कूठ, शुद्ध अमृतं पारदं गन्धं लोहम, शिलाजतु । गन्धक, शुद्ध हिंगुल,मैनफल, मालकंगनी, दारचीनी, गुञ्जामात्रां वटी कुर्यान्मईयित्वामृताम्भसा ।। अभ्रकभस्म, लोहभस्म प्रत्येक २॥ तोला, हलाहल एषामृताङ्कुरवटी पीता धान्यम्भसा सह ।। विष १ निष्क, (२-३ रत्ती) गुड़ आधा सेर । क्षुद्ररोगानशेषांस्तु गदान पित्तास्त्रकोपजान॥ सबको भांगरे के रसमें मर्दन करके बेरके बराबर ज्वरं जीर्ण प्रमेहं च कार्यमग्निक्षयं सथा। | गोलियां बनावे । प्रति दिन एक एक गोली खानेसे नाशयेज्जनयेत्पुष्टि कान्ति मेधां शुभांगतिम॥ ८० प्रकार की बात व्याधि, १८ प्रकार के कुष्ठ, शुद्ध मीठातेलिया, शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, २० प्रकार के प्रमेह, ६ प्रकार के अपस्मार, नाड़ी लौहभस्म, अभ्रकभस्म और शिलाजीत सब समान। व्रण (नासूर) ११ प्रकारका क्षय, ऊर्ध्वश्वास, सूजन, सबको गिलोयके रसमें खरल करके एक एक रत्ती | पसूतवात, आमवात, पाण्डु, कामला,बवासीर आदि की गोलियां बनावे । इन्हें आमले के रस के साथ रोगों का नाश होता है । x सेवन करने से क्षुद्र रोग, पित्त और रक्तदोषज रोग, । [१२६] अम्लपित्तान्तको मोदकः जीर्ण ज्वर, प्रमेह, कृशता और अग्निमांद्य का नाश (भै. र. अ. पि.) होता है तथा बल पुष्टि और कान्ति तथा बुद्धि | नागरस्य कणायाश्च पलान्यष्टौ प्रदापयेत् । बढती हैं। गुवाकस्य पलान्यष्टौ सर्वमेकत्र कारयेत् ॥ [१२५] अमृतानामगुटिका घृत क्षीरं ततः पश्चात्प्रस्थं प्रस्थं प्रदापयेत् । (र. रा. सु.) लवर्ष केशरं कुष्ठं यवानी कारवी वच ।। पलत्रयं चित्रकच चेतकी च पलत्रयम् । चन्दनं मधुकं रास्ना देवदारु फलत्रिकम् । पारदं त्रिकुटं चैव पिप्पलीमूलमुस्तकम् ।। पत्रमेला वराङ्गं च सैन्धवं हबुषं शठी ॥ जातीफलंयुद्धदारु ग्राहयेच्च पलं पलम् । मदन कटफलं मांसी गगनं बगरूप्यकम् ॥ एला शुभा कुष्ठगन्धं दरदं करहाटकम् ॥ तालीशं पपकं मूर्वा समङ्गा वंशलोचना ।। ज्योतिष्मती त्वगभ्रश्च आयसं च पलधिकम् । प्रन्थिकं शतपुष्पा च शतमूलकुरुण्टकम् । हालाहलं निष्कमेकं गुडं पलाष्टकम् ।। भुंगराजरसेनैव गुटिका कोलसम्मिता। जातीफलं जातीकोष ककोलमम्बुदं कणा ॥ एकैकां भक्षयेन्नित्यं वाताशीतिविनश्यति ॥ | कर्पूरश्च विडङ्गश्च अजमोदा बलामृता । कुष्ठाष्टादश नश्यन्ति प्रमेहान् विंशतिरतथा।। | मर्कटी क्षुरषीजश्च चन्दनंदेवताडकम् ॥ अपस्मारं षडैतानि सर्वनाडीव्रणाणि च x इस प्रयोग को अत्यन्त सावधानी पूर्वक क्षयमेकादशकं हन्ति ऊर्ध्वश्वासं सुसुप्तिका । विष को शुद्ध करके लेना चाहिये अन्यथा बनाना तथा व्यवहार करना चाहिये । हलाहल शोथामवातपाण्डुत्वं कामलार्शो निहन्ति षट् ॥ | हानि की संभावना है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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