SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra इ अथ इकारादिकषायप्रकरणम् (९०६९) इक्षुरसादियोगः www.kobatirth.org ( यो. र. । मूत्रकृच्छ्रा. ) भृष्टेथुस्वरसं ग्राहथमाखु विविहितं पिवेत् । नाशयेन्मूत्रकृच्छ्राणि सद्य एव न संशयः ॥ ईखके रसमें चूहेकी विष्ठा डालकर पीने से मूत्रकृच्छ्र अवश्य नष्ट हो जाता है । इति इकारादिकषायप्रकरणम् (९०७१) इक्षुरका चूर्णम् ( ग. नि. । वाजीकरणा . ) इक्षुरगोरको शतमूली वानरिनागबलातिलमाषाः । चूर्णमिदं पयसा निशि पेयं यस्य गृहे प्रमदाशतमस्ति ॥ अथ इकारादिचूर्णप्रकरणम् (९०७०) इन्द्रयवादिकाथः ( शा. सं. । ख. २ अ. २ ) यत्रधान्यपटोलानां क्वाथः सक्षौद्रशर्करः । योज्यः सर्वातिसारेषु विल्वाम्रास्थिभवस्तथा ॥ इन्द्रजौ, धनिया और पटोल के क्वाथमें शहद और खांड मिलाकर पीने से या बेलगिरी और आमकी गुटलोकी मज्जा ( गिरी ) का क्वाथ पीने से समस्त प्रकार के अतिसार नष्ट होते हैं । तालमखाना, गोखरु, शतावर, कौंच के बीज (छिलके रहित), नागबला ( गुलशकरी ), तिल और उड़द समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसे रात्रि के समय दूध के साथ सेवन करने से कामशक्ति अत्यन्त प्रबल हो जाती है । ( मात्रा - ४ - ६ माशे । ) (२०७२) इक्ष्वादिचूर्णम् ( यो. र. | कासा. ) इक्ष्वालिकापद्ममृणालोत्पलचन्दनैः । मधुकं पिप्पली द्राक्षा शृङ्गी चैत्र शतावरी ॥ द्विगुणा च तुगाक्षीरी सिता सर्वैश्चतुर्गुणा । लिह्यात्तं मधुसर्पिभ्यां क्षतकास निवृत्तये ॥ तालमखाना, कासकी जड़, कमल, कमलनाल, For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy