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अथ इकारादिकषायप्रकरणम्
(९०६९) इक्षुरसादियोगः
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( यो. र. । मूत्रकृच्छ्रा. ) भृष्टेथुस्वरसं ग्राहथमाखु विविहितं पिवेत् । नाशयेन्मूत्रकृच्छ्राणि सद्य एव न संशयः ॥
ईखके रसमें चूहेकी विष्ठा डालकर पीने से मूत्रकृच्छ्र अवश्य नष्ट हो जाता है ।
इति इकारादिकषायप्रकरणम्
(९०७१) इक्षुरका चूर्णम्
( ग. नि. । वाजीकरणा . )
इक्षुरगोरको शतमूली वानरिनागबलातिलमाषाः । चूर्णमिदं पयसा निशि पेयं यस्य गृहे प्रमदाशतमस्ति ॥
अथ इकारादिचूर्णप्रकरणम्
(९०७०) इन्द्रयवादिकाथः ( शा. सं. । ख. २ अ. २ ) यत्रधान्यपटोलानां क्वाथः सक्षौद्रशर्करः । योज्यः सर्वातिसारेषु विल्वाम्रास्थिभवस्तथा ॥
इन्द्रजौ, धनिया और पटोल के क्वाथमें शहद और खांड मिलाकर पीने से या बेलगिरी और आमकी गुटलोकी मज्जा ( गिरी ) का क्वाथ पीने से समस्त प्रकार के अतिसार नष्ट होते हैं ।
तालमखाना, गोखरु, शतावर, कौंच के बीज (छिलके रहित), नागबला ( गुलशकरी ), तिल और उड़द समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
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इसे रात्रि के समय दूध के साथ सेवन करने से कामशक्ति अत्यन्त प्रबल हो जाती है । ( मात्रा - ४ - ६ माशे । ) (२०७२) इक्ष्वादिचूर्णम्
( यो. र. | कासा. ) इक्ष्वालिकापद्ममृणालोत्पलचन्दनैः । मधुकं पिप्पली द्राक्षा शृङ्गी चैत्र शतावरी ॥ द्विगुणा च तुगाक्षीरी सिता सर्वैश्चतुर्गुणा । लिह्यात्तं मधुसर्पिभ्यां क्षतकास निवृत्तये ॥
तालमखाना, कासकी जड़, कमल, कमलनाल,
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