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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
अथाकारादि- मिश्रप्रकरणम्
(८९९६) अगारधूमादिवर्तिः ( यो. र. | उदावर्ता.)
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अगारधूमः पिप्पल्यो मदनं सजसर्षपाः । गोमूत्रपिष्टाः सगुडा फलवर्तिः प्रशस्यते ॥
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(८९९८) अजमूत्रादियोगः
( यो त । त. ७५ ) वस्तमूत्रं च सघृतं नवनीतं च माहिषम् । पलत्रयं पिवेन्नारी बन्ध्या ते सुतोत्तम् ॥
बकरे का मूत्र, घी और भैंसका मक्खन ५-५ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर सेवन करने से बन्ध्या स्त्रीको पुत्र प्राप्ति होती है ।
[ अकारादि
घरका धुवां, पीपल, मैनफल और राई समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और उसे गोमूत्र में पीसकर ( सबके बराबर ) गुड़में मिलाकर ( कन उंगली के समान) बत्तियां बना ले
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(८९९९) अजाज्यादिमुखधावनम् ( यो. र. । अरोचका.; ग. नि. । अरोचका. १३) इनमें से एक बत्ती मलमार्गमें रखनेसे उदा - अजाजी मरिचं कुष्ठं बिडं सौवर्चलं तथा । वर्तका नाश होता है ।
(८९९७) अजगन्धादिपानकम्
( ग. नि. । ज्वरा. १ )
अजगन्धा त्रिकटुकं तथैव च हरीतकी । पाठा मूर्वा समञ्जिष्ठा विडङ्गं सैन्धवं वचा || एतान् सर्वान् समानीय कल्कपेष्यान् प्रकल्पयेत्
तस्यार्धशुक्ति पूतस्य गव्यमूत्रेण पाययेत् ॥ एतद्धि पानकं श्रेष्ठ कासश्वासनिबर्हणम् । सन्निपातभवान् व्याधीन् सद्य एव चिकित्सति । । जाती है ।
मधुकं शर्करा तैलं वातिके मुखधावनम् || करदन्तकाष्ठं च विधेयमरुचौ सदा ॥
जीरा, कालीमिर्च, कूठ, बिडलवण, संचल, (काला नमक), मुलैठी और खांड; इनके समान भाग चूर्ण को एकत्र मिलाकर उसमें थोड़ासा तिलका तेल मिला लें ।
इसे जिह्वा और मुखमें मलकर मुख साफ करनेसे वातज अरुचि नष्ट होती है ।
raat दातौन करनेसे भी अरुचि नष्ट हो
(९०००) अजीर्णनाशकगणः
अजगन्धा (बन तुलसी या बन अजवायन ), सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, पाठा, मूर्वा, मजीठ, बाय
( यो. र. । अजीर्णा. )
बिड़ंग, सेंधानमक और बच समान भाग लेकर | नारीकेलफलेषु तण्डुलमथ क्षीरं रसाले हितं
जम्बीरोत्थरसो घृते
पानी के साथ बारीक पीस लें । इसमें से १| तोले 1 कल्क को गोमूत्र में मिलाकर पीने से कास, श्वास और सन्निपात विकार शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ।
( व्यवहारिक मात्रा - ३-४ माशे । )
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समुचितः सर्पिस्तु मोचाफले । गोधूमेषु च कर्कटी हितमा मांसाशने काञ्जिक नारङ्गे गुडभक्षणं कथितं पिण्डालुगं कोद्रवे ||