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रसप्रकरणम् ]
परिशिष्ट
जड़, अजवायन और पीपलामूल; इनका चूर्ण तथा । (८९९४) अहिफेनवटिका लोहभस्म, सीसाभस्म और ताम्रभस्म ५-५ तोले ।
___ (रसे. सा. सं. ; र. चं. । अतिसारा.) डाल कर अच्छी तरह मिला दें। ___ इसे यथोचित मात्रानुसार प्रातःकाल सेवन । अहिफेनं सखर्जूरं घृष्ट्वा गुजैकमात्रकम् । करनेसे समस्त प्रकारके वातज रोग नष्ट होते । रक्तस्रावमतीसारमतिवृद्धं विनाशयेत् ।। तथा पृष्ठ और गुदस्थित वायु; अस्थिभंग, शोथ,
(१ तोला ) खजूर को पीसकर उसमें १ दारुण सन्धिवात, ब्रण, हृद्रोग, गुल्म, अर्श, श्वास, कास और प्रमेहका नाश होता है । यह अत्यन्त
रत्ती अफीम मिलाकर देनेसे प्रवृद्ध रक्तातिसारका वाजीकर है। इसका आविष्कार अश्विनीकुमारों | नाश हो जाता है। ने किया है।
(८९९५) अहिफेनादियोगः (मात्रा-आधेसे १ तोला तक।)
(वै. म. र. । पटल ६) (८९९३) अश्वत्थादियोगः
सर्वातिसारान् सहसा जयेदन्यैः किमौषधैः । ( यो. र. । क्षयरोगा.)
तथा हिफेनं सक्षौद्रं तुल्यकारस्करत्वचम् ॥ अश्वत्थवल्कलं चैव त्रिकटुलोहकिट्टकम् ।
कुचलेके वृक्षकी छाल का चूर्ण और अफीम गुडेन सह दातव्यं क्षयरोगविनाशनम् ॥
| बराबर बराबर लेकर एकत्र खरल करें । अश्वत्थ ( पीपल वृक्ष )की छाल, सोंठ, मिर्च और पीपल; इनका चूर्ण तथा मण्डूर भस्म समान
इसे शहदके साथ खिलाने से समस्त प्रकारके भाग लेकर सबको एकत्र खरल करें।
अतिसार नष्ट होते हैं । इस योग की मौजूदगीमें इसे गुड़के साथ मिलाकर सेवन करनेसे क्षय
अतिसारके लिये अन्य किसी भी औषधकी आव
श्यकता नहीं रहती। रोग नष्ट होता है। ( मात्रा-१॥ माशा ।)
(मात्रा-आधी रत्ती ।)
इत्यकारादिरसपकरणम्
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