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(३४६)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
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कस्तूरी
कुमुदनी
अप्राप्त द्रव्य प्रतिनिधि | अप्राप्त द्रव्य प्रतिनिधि लोह मण्डूर
कर्पूर
सुगा धत मोथा सिद्धार्थ (सफेद साधारण सरसों
गन्धशठी सरसों)
कोकिलाक्ष गोखरूके बीज चय पिप्पलीमूल
चीता
दन्ती या चिरचिटेका गजपीपल पीपलामूल
खार पृश्निपर्णी शालपर्णी
धमासा
जवासा मुञ्जतिका तालमस्तक
तगर केसर हल्दी मौलसिरी
लाल या नीला कमल मोती सीप
अहिंस्रा
मानकन्द हीरा कौड़ी
लक्ष्मणा
मोरशिखा काकड़ासिंगी मायाम्बु
नीलकमल धनिया सोया
बाबची
पवारके बीज वाराहीकन्द चर्मकारालु
अतीस
नागरमोथा मूर्वा जिङ्गिनीकी छाल
मेदा, महामेदा शतावर सोना लोह
जीवक
विवारीकन्द चांदी
ऋद्धि
वाराहीकन्द काकोली
असगन्ध सामुद्र या विड लवण
सोना धनिया
सोनामक्खी कुस्तुम्बुरु
अदरक कच्चेफल पुष्प
सोंठ भिलावाअसहा होतो लाल चन्दन
अनन्तमुल
उवा स्त्रीका दृध शिण्डाकी मद्य
गधीका दुध हीरा काजी शुक्त
पोखराज चव्य
यत्र यद् द्रव्यमप्राप्तं मेषजे परपूर्वतः । चव्य तालमूली
ग्राह्यं तम् गुणसाम्यात् तु न तत्र कापि दूषणम् ॥ कुडा
____ यदि किसी योगमें कोई ओषधि प्राप्त न रास्ना वन्दाक
हो तो उसी योग में कही हुई ओषधियोमें जीरा धनिया
से अप्राप्त ओषधिसे पहिले या पीछे कही तुम्बुरु शालि धान्य
हुई उसीके समान गुणवाली ओषधि ग्रहण रसोत
दारुहल्दीका क्वाथ करनी चाहिए ।
पोखरमूल सेंधानमक
मुल्हैठी
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