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विविधपरिभाषाः पुटपाकविधिः
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परिभाषा प्रकरण
पश्चम प्रकरणम्
पुढे पक्कस्य द्रव्यस्य स्वरसो गृह्यते यतः । अतोऽयं पुटपाकः स्याद्विधानं तस्य कथ्यते ॥
कभी कभी पुटपाक विधिद्वारा द्रव्योंका स्वरस निकाला जाता है अतएव यहां पुट पाककी विधि लिखी जाती है ।
द्रव्यमपोथितं जम्बूवटपत्रादिसम्पुटे । वेयित्वा ततो बद्ध्वा दृढं रज्वादिना तथा ॥ लेने चाहियें । मृपं द्वयले कुर्यादथवाङ्गुलिमात्रकम् । दहेत्पुटान्तरादग्नौ यावलेपस्य रक्तता ॥
ओषधिको कूटकर जामन या बड़के पत्तों में लपेटकर उसे रस्सी आदिसे कसकर मज़बूत बांध और उसके ऊपर दो अङ्गुल या एक अकुल मोटा मिट्टीका लेप करके ( सुखाक) अग्निमें era | ब ऊपर वाली मिट्टी का रंग लाल हो जाय तो पुटपाक सिद्ध समझें।
षडङ्गपरिभाषा
यद भृतशीतासु षडङ्गादि प्रयुज्यते । कर्षमात्रं ततो द्रव्यं साधयेत्प्रास्थिकेऽम्भसि ॥ अर्द्धतं प्रयोक्तव्यं पाने पेयादिसंविधौ ||
श्रुतशीतादि पेय जल बनाने के लिए पडङ्ग परिभाषाका प्रयोग किया जाता है । वह इस प्रकार है कि - १ तोला ओषधियोंको १ सेर पानी में पकाकर आधा शेष रक्खें । यह जल प्रायः पीने और पेयादि बनानेके लिए व्यवहृत होता है ।
क्षीरपाकविधिः
द्रव्यादष्टगुणं क्षीरं क्षीरात्तोयं चतुर्गुणम् । क्षीरावशेषः कर्तव्यः क्षीरपाके त्वयं विधिः ॥
ओषधिसे ८ गुना दूध और दूधसे चार गुना पानी मिलाकर इतना पकाना चाहिए कि दूध बाकी रद्दजाय ।
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कल्ककथा निर्देशे
| कल्कक्काथावनिर्देशे गणात्तस्मात्प्रयोजयेत् । यदि शास्त्रमें कल्क या क्वाथ न बतलाया हो अर्थात् केवल यह लिखा हो कि अमुक ओषधियोंसे घृत या तेल आदि सिद्ध कर लिया जाय और यह न लिखा हो कि इन arraat sea डाला जाय या क्वाथ, तो वहां इन ओषधियोंका कल्क और क्वाथ दोनों
( ३४७ )
आसवारिष्ट विधानम् अनुक्तमानारिप्रेषु द्रवद्रोणे तुला गुडम् । क्षौद्रं क्षिपेद् गुडादर्द्ध प्रक्षेपं दशमांशकम् ॥
यदि अरिष्ट के पदार्थोंका परिमाण न बतलाया गया हो तो ३२ सेर द्रव ( जलादि) पदार्थ में ६ सेर गुड़, गुड़से आधा शहद और गुड़का दसवां भाग प्रक्षेप द्रव्योंका चूर्ण डालना चाहिए |
तण्डुलोदक (ज्येष्ठाम्बु)
तण्डलं कणशः कृत्वा पलं ग्राह्यं हि तण्डुलात् । चतुर्गुणं जलं देयं तण्डुलोदककर्मणि ॥
कूटकर बारीक किए हुवे चावल ५ तोला लेकर चारगुने पानी में भिगोदें (जय चावल नरम हो जाय तो पानी नितार लें) यह पानी rogates कहलाता है ।
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उष्णोदक (सुखोदक अमेनांशशेषेण चतुर्थेनार्द्धकेन वा । अथवा कथनेनैव सिद्धमुष्णोदकं वदेत् ॥
पानीको पकाकर आठवां, चौथा अथवा आधा भाग शेष रक्खें या केवल उबाल लें तो उसका नाम 'उष्णोदक' होगा ।