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परिभाषाप्रकरण
वर्तमान आपेक्षिक मान १ धान = १ चावल =(a grain of paddy)| १६ छटांक = १ सेर-८० तोला 32 02(approx.) ४ धान = १ रत्ती = (13 grains) १ कांच छटांक=4 FL.drams , ६ रति = १ आना = 111 grains १ छटांक = सेर = 2 FL. ozs , ८ रति = १ माषा = 15 grains=lgram १ पाव = १ सेर = 8 FL. ozs , १६ आना = १ तोला = 180 grains । १ सेर = २ पैाँड =32 FL. Ozs , १ रुपया = १ तोला
१ मन = 82 पैड 2 ozs ५ तोला = १ छटांक =2 ounces (approx.) १ टन - २७ मन
द्वीतीय प्रकरणम्. अथ द्रव्य ग्रहणविधिः
स्थान मेदेन गुणमेदः निर्देशः शृयते तन्त्रे द्रव्याणां यत्र यादृशः। आग्नेया विध्यशैलाद्या सौम्या हिमगिरिर्मतः। तादृशः संविधातव्यः शास्त्राभावे प्रसिद्धितः॥ ततस्तान्यौषधानि स्यु प्रशस्तानि क्रियाविधौ ॥ शास्त्र में किसी द्रव्यके ग्रहण करने में जैसी
विन्ध्याचल आदि पर्वत आग्नेय गुण वाले आहा हो उसीके अनुसार ग्रहण करना चा
और हिमालयादि सौम्य गुणवाले हैं अतएव हिए और जहां शास्त्रने मौन धारण किया इन में उत्पन्न होनेवाली ओषधियां भी यथा हो वहां परिभाषा अनुसार कार्य करना
क्रम आग्नेय और सौम्य गुणवाली होती हैं। चाहिए।
चिकित्सा के समय यह वात अवश्य ध्यान
में रखना चाहिए। साधारण विधिः
- कालभेदे द्रव्यग्रहणम् धम्वसाधारणे देशे मृदावुत्तरतः शुचौ।।
शरद्यखिलकर्मार्थ ग्राह्यं सरसमौषधम् । अवैकृतं अनाकान्तं सवीर्य ग्राह्यमौषधम् ॥
विरेकवमनार्थञ्च वसन्तान्ते समाहरेत् ॥ __ साधारणतः धन्व (मरु भूमि और जाङ्गल
समस्त कार्यों के लिये रसयुक्त ओषधियां देशके लक्षणोंसे युक्त) देशमें उत्पन्न हुई वि.
शरद् में ग्रहण करनी चाहिएं परन्तु वमन कार रहित, कीटादि रहित, वीर्ययुक्त औषधि
और विरेचनकी ओषधियां वसन्त ऋतुके उत्तर दिशा एवं पवित्र स्थानसे ग्रहण क- अन्तमें ग्रहण करनी चाहिएं। रनी चाहिए।
मूलानि शिशिरे ग्रीष्मे पत्रं वर्णवसन्तयोः। निषिद्धोषधिः त्वकन्दौ शरदि क्षीरं यथर्तु कुसुमं फलम् ॥ देवतालयवल्मीककूपरथ्याश्मशानजाः। हेमन्ते सारमोषध्या गृहणीयात् कुशलो भिषक् ॥ अकालतरुमूलोत्था न्यूनाधिकचिरन्तनाः ॥ चतुरवैद्य का कर्तव्य है कि ओषधियों के जलाग्निकृमिसंक्षुण्णा ओषध्यस्तु न सिद्धिदाः॥ मूल शिशिर ऋतुमें, पत्र ग्रीष्म ऋतुमें, छाल
देवतालय, बमी, कुएं के पास, रास्ते | वर्षामें, कन्द वसन्तमें द्ध शरद् ऋतुमें, और श्मशान में उत्पन्न हुई तथा असमय सार हेमन्त ऋतुमें और फल एवं फल जिस (बेमौसम) और तरुमूलमें उत्पन्न हुई, उचित | ऋतुमें उत्पन्न हो उसीमें ग्रहण करें। परिमाणसे हस्व अथवा अधिक दीर्घ और | आद्राण्येव प्रशस्तानि पुरानी तथा जल, अग्नि और कीड़ोंसे विकृत वासानिम्बपटोलकेतकिबलाकुष्माण्डकेन्दीवरीऔषधि फलदायक नहीं होती।
। वर्षाभूकुटजाश्वगन्धसहितास्ताः पूतिमन्धामृताः।
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